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हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार

और बर्वरतापूर्ण कृत्य मानकर अपने सार्वजनिक जीवनसे उसका नामोनिशान मिटा दें, तो मुझे कोई सन्देह नहीं कि आम जनता तत्काल उनका अनुगमन करनेको तैयार हो जायेगी।

जहाँतक राजनीतिक मामलोंका सवाल है, एक असहयोगीकी हैसियतसे मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। पर भावी समझौतेके बारेमें मेरी राय यह है कि बहुसंख्यक पक्ष होने के नाते हिन्दुओंको चाहिए कि वे किसी प्रकारकी सौदेबाजी न करें और हकीम अजमलखाँ-जैसे किसी व्यक्तिके हाथमें कलम देकर कहें कि अब आप जो फैसला कर देंगे वह हमारे सिर-आँखोंपर होगा। सिखों, ईसाइयों, पारसियों आदिके साथ भी मैं ऐसा ही करना पसन्द करूँगा; वे अपनी इच्छासे हमें जो-कुछ दे देंगे, उसीमें सन्तुष्ट रहने को कहूँगा। मेरे विचारसे यही एकमात्र उचित, न्यायसंगत, सम्मानजनक और शोभनीय समाधान है। यदि हिन्दू लोग विभिन्न जातियोंके बीच एकता चाहते हों तो उनमें अल्पसंख्यक जातियोंपर विश्वास करनेकी हिम्मत तो होनी ही चाहिए। दूसरी किसी भी बुनियादपर किया गया समझौता अरुचिकर सिद्ध होगा। लाखों करोड़ों आम लोगोंको कौंसिल और नगरपालिकाओंमें जानेकी इच्छा नहीं है और अगर हम सत्याग्रहका सही उपयोग समझ गये हैं तो हमें यह जान लेना चाहिए कि इसका उपयोग किसी भी अन्यायी शासकके खिलाफ किया जा सकता है और किया जाना चाहिए- फिर भले ही वह शासक हिन्दू हो या मुसलमान अथवा किसी और कौमका; और जो शासक अथवा प्रतिनिधि न्यायप्रिय होगा, वह हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों हालतोंमें अच्छा ही होगा। हम साम्प्रदायिक भावनाको समाप्त कर देना चाहते हैं। इसलिए बहुसंख्यक लोगोंको इस दिशामें पहल करनी चाहिए और अल्पसंख्यकोंमें अपनी सदाशयताके प्रति विश्वास उत्पन्न करना चाहिए। समझौता तो तभी सम्भव है जब कि अधिक शक्तिशाली पक्ष कमजोर पक्षकी ओरसे अनुकूल प्रतिक्रियाकी प्रतीक्षा किये बिना कदम उठाये।

सरकारी विभागोंकी नौकरियोंके बारेमें मेरा खयाल यह है कि यदि इस क्षेत्रमें साम्प्रदायिक भावनाको दाखिल किया गया तो वह सुशासनके लिए घातक होगा। कोई भी प्रशासन दक्ष तभी हो सकता है जब उसकी बागडोर योग्यतम व्यक्तियोंके हाथोंमें हो। पक्षपात तो कतई नहीं होना चाहिए अर्थात् अगर हमें पाँच इंजीनियरोंकी जरूरत हो तो हर जातिमें से एक-एक इंजीनियर न लेकर सबसे ज्यादा पाँच योग्य व्यक्तियोंको चुना जाना चाहिए भले ही वे पाँचों मुसलमान या पारसी ही हों। यदि आवश्यक समझा जाये तो सबसे नीचेकी जगहोंपर नियुक्ति परीक्षाके आधारपर की जानी चाहिए और यह परीक्षा विभिन्न जातियोंके लोगोंसे गठित निष्पक्ष निकाय द्वारा ली जानी चाहिए। परन्तु इन नौकरियोंका बँटवारा कौमोंकी तादादके अनुपातमें हरगिज नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय सरकारके अधीन शिक्षाके क्षेत्रमें पिछड़ी जातियोंके लोगोंको विशेष शैक्षणिक सुविधा प्राप्त करनेका अधिकार होगा और यह अधिकार उन्हें सुगमतासे प्राप्त हो सकता है। पर जिन लोगोंकी महत्वाकांक्षा सरकारमें उत्तरदायित्वपूर्ण पद पानेकी हो, उनके लिए तो इन निर्धारित परीक्षाओंमें उत्तीर्ण होना अनिवार्य रहेगा।