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८३. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे

अहमदाबाद
३१ मई, १९२४

श्री गांधीसे पूछा गया कि ‘यंग इंडिया’ में कांग्रेस-संगठनके सम्बन्धमें लिखे गये उनके लेखको[१] देखते हुए क्या कांग्रेसमें दरार पड़ना अवश्यम्भावी नहीं हो गया है। उन्होंने उत्तर दिया:

यह तो इस बातपर निर्भर करता है कि आप दरारका अर्थ क्या लगाते हैं। यदि आपका मतलब दो दलोंसे है तो कहूँगा कि हाँ, दो दल तो गयाँ कांग्रेसमें[२] ही हो गये थे। कॉमन्स सभामें कई दल शामिल हैं, लेकिन आप उसे अंग्रेज-राष्ट्रमें दरार पड़ना तो नहीं कहते। अब कांग्रेसमें दो दल रहेंगे, लेकिन मुझे आशा है कि उससे दरार तो नहीं पड़ेगी। जैसे कामन्स सभामें सबसे अधिक लोकप्रिय दल ही हमेशा सत्तारूढ़ रहता है उसी तरह कांग्रेसके भीतरके सबसे लोकप्रिय दलको ही इस राष्ट्रीय संगठनकी बागडोर सँभालनी चाहिए और जैसे कि लिबरल दलवाले कंजरवेटिव दल या लेबर दलवालोंको अपनेसे छोटा माननेकी धृष्टता नहीं कर सकते और न करते है उसी तरह अपरिवर्तनवादी भी अपने-आपको अन्य दलोंसे ऊँचा नहीं मान सकते और न अन्य दलवाले ही अपने-आपको उनसे ऊँचा मान सकते हैं। मेरे सुझावमें कमसे-कम यह कोशिश तो की ही गई है कि दरार न पड़ने पाये और यदि वह कार्यक्षमताकी पक्की गारंटी न भी देता हो तो भी उसके लिए अत्यन्त अनुकूल वातावरण प्रस्तुत करता है। मेरा मिली-जुली सरकारमें कभी यकीन नहीं रहा और ऐसे समयमें तो हरगिज नहीं जब बहुत महत्वपूर्ण बातोंपर मतभेद मौजूद हों; या आप चाहें तो कह सकते हैं कि जब ऐसी भिन्न-भिन्न मनोवृत्तियाँ मौजूद हों जिनके कारण एक-दूसरेके बिलकुल भिन्न और नितान्त विरुद्ध कार्य-प्रणालियाँ अपनाना आवश्यक हो जाये।

फिर श्री गांधीसे पूछा गया कि उनके खयालसे सरकारपर इसका क्या असर पड़ेगा और क्या इसके फलस्वरूप सुधारोंकी दिशामें जिस प्रगतिकी आशा की जा रही है, उसकी सभी सम्भावनाएँ समाप्त नहीं हो जायगी, इसपर उन्होंने कहा:

मैं ऐसा नहीं समझता। मुझे मालूम है कि कुछ लोगोंका कहना है कि अगर मैं परिवर्तनवादी लोगोंके साथ मिलकर काम करने लगता तो सरकार थर्रा उठती। मेरा विचार इससे बिलकुल ही उलटा है। भारत सरकारकी बागडोर सँभालनेवाले अधिकारी मूर्ख नहीं हैं। वे काफी चालाक और सतर्क लोग हैं। वे जानते हैं कि:

  1. देखिए, “कांग्रेस संगठन", २९-५-१९२४।
  2. सन् १९२२ में।