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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर कोई वास्तविक दबाव पड़ता है तो वह अपरिवर्तनवादियोंका ही पड़ता है, क्योंकि सविनय अवज्ञासे उनकी रूह काँपती है। सविनय अवज्ञाके लिए वे ही लोग संगठन कर सकते हैं जो उसीके लिए अपना सारा समय दें और उसीपर सारा ध्यान लगायें। अगर अपरिवर्तनवादी और परिवर्तनवादी एक-दूसरेकी राहमें रोड़ा अटकाते है तो सरकार अवश्य ही प्रसन्न होगी। मैं तो ऐसी किसी बातमें शामिल नहीं होऊँगा और मैं समझता हूँ कि ये दोनों दल भी इसमें शामिल नहीं होना चाहेंगे। दोनों ही स्वराज्य हासिल करना चाहते हैं और जल्दीसे-जल्दी। इसलिए दोनों उसके लिए अपने-अपने ढंगसे काम करेंगे। लिबरल लोग चाहे स्वीकार करें या न करें, तथ्य यही है कि असहयोगियोंके ही कार्यों के परिणामस्वरूप सरकारमें लिबरलोंकी पूछ होने लगी है। देशमें अगर कोई प्रगतिशील दल कौंसिलोंके बाहरसे सरकारपर दबाव डाले तो उससे सुधारोंके समर्थकोंको सदा ही सहायता मिलेगी। मैं तो यहाँतक कहता हूँ कि अगर पूर्ण बहिष्कारके सभी समर्थक खत्म हो जायें तो कौंसिलोंमें कौंसिलवालोंकी स्थिति बड़ी ही दयनीय हो जायेगी। इसमें मैं यह मानकर चल रहा हूँ कि सर्वसाधारण हिंसाका रास्ता कभी नहीं अपनायेगा। सभी निरंकुश सरकारें जरूरी तौरपर जनशक्तिके उभारसे डरती हैं, खासतौरसे तब जब जनशक्तिका उभार अनुशासनबद्ध और शान्तिपूर्ण हो। वर्तमान सरकार, हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच जो एकता बढ़ रही है, उससे डरती है और अगर खद्दरका कार्यक्रम कहीं सफल हो जाये, और जो जरूर ही होगा, तब तो उसके होश ही उड़ जायेंगे। इससे सरकार जनताके दृष्टिकोणको स्वीकार कर लेगी और एक ऐसी अत्यन्त शान्तिमय क्रान्ति घटित होगी जैसी संसारने कभी नहीं देखी।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २-६-१९२४

८४. वीसनगरके हिन्दू और मुसलमान

इस बाबत मुझे ढेरों पत्र प्राप्त हुए हैं। पत्र-लेखक भी इन सब पत्रोंके प्रकाशित किये जानेकी आशा नहीं करते। यह बात उनकी उदारताकी परिचायक है और इससे यह भी मालूम होता है कि मैने ‘नवजीवन' पत्रके संचालनमें जो मार्ग अपनाया है वे उस मार्गकी कद्र करते हैं। जिस पत्रमें किसीपर आक्रमण किया गया हो उसे मैं कदापि प्रकाशित नहीं करूंँगा। जिससे कौमोंमें परस्पर द्वेष फैले, मैं ऐसी चीज भी नहीं छापूँगा। मैं द्वेषभावसे तो एक अक्षर भी नहीं लिख सकता। यदि मैंने वीसनगरके कौमी तनातनीको लेकर कुछ लिखा है तो वह सिर्फ दोनों कौमोंको शान्त करने, समझाने-बुझाने और उनका एक-दूसरेके प्रति क्या कर्त्तव्य हो सकता है――यह सब बताने के लिए ही लिखा है।

इस दृष्टिसे विचार करनेपर मुझे जितने पत्र प्राप्त हुए हैं उनमें से एकको भी प्रकाशित करना जरूरी नहीं है। बहुत दिन पहले मेरे पास महासुखभाईका भी पत्र