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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जवान है। जिसका एक भी बाल सफेद नहीं हुआ, जिसके सब दाँत मौजूद हैं, ऐसा युवक अगर आलस्यवश देश-सेवा नहीं करता तो वह जवान होनेके बावजूद बूढ़ा है। हमारी कामना है कि हिन्दुस्तानमें अब्बास साहब-जैसे जवान-बूढ़े बहुतसे हों।

‘कोई उत्साह नहीं’

भाई मोहनलाल पण्ड्याने इस शीर्षकके अन्तर्गत प्रायश्चित्तके[१] रूपमें निम्न पत्र लिखा है।[२]

इस पत्रको पढ़कर अण्णा साहबका खून तो सेर-भर बढ़ जायेगा और सब लोग जहाँतक उनसे बन पड़ेगा राष्ट्र के काम-काजमें राष्ट्रभाषाका प्रयोग करने लगेंगे। मैं हिन्दी पढ़नेके अभिलाषी व्यक्तिको एक आसान रास्ता बताता हूँ। अगर उससे बन पड़े तो उसे व्याकरणकी एक सरल पुस्तक पढ़ लेनी चाहिए। जहाँतक मेरा खयाल है, अब तो ‘हिन्दी गुजराती शिक्षक’ नामक पुस्तक प्रकाशित हो गई है। अगर मेरा यह खयाल ठीक है तो वह उसे खरीद ले। वह ‘हिन्दी नवजीवन’ पढ़े। यदि किसीको ‘हिन्दी नवजीवन‘ के सम्पादकके रूपमें मेरी दी हुई इस सलाहमें पक्षपातकी गंध आती हो तो वह चाहे तो कोई अन्य पुस्तक पढ़े। तीसरे, वह तुलसीदासजीकी सटीक 'रामायण' का पाठ करे। यदि वह 'रामायण'को सौ बार भी पढ़ेगा तो भी फायदा ही है। टीकाकी हिन्दी सरल होती है। यदि वह इसके अतिरिक्त हिन्दीकी कोई अन्य पुस्तक न भी पढ़े तो भी कोई हर्ज न होगा। यदि हिन्दी बोलने में भूलें हों तो भी उनकी कतई चिन्ता न करनी चाहिए। भूलें करते-करते भूलोंको सुधारनेका अभ्यास हो जायेगा। भूलोंकी चिन्ता न करनेकी सलाह आलसी लोगोंके लिए नहीं, वरन् मुझ-जैसे भाषा सीखनेके इच्छुक अध्यवसायी सेवकोंके लिए है। हिन्दी बोलते समय संस्कृत शब्दोंका उपयोग कम ही करना चाहिए तथा सरल हिन्दी और उर्दूके सम्मिश्रणसे बनी भाषाका उपयोग करना चाहिए, जिसे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समझ सकें। मैं ऐसी मिश्रित भाषाको हिन्दुस्तानीका नाम देता हूँ।

भाई मोहनलाल पण्डयाने एक प्रायश्चित्तमें दूसरे प्रायश्चित्तको भी मिला दिया

है। मेरे लेखोंमें कभी-कभी निराशाके विचार दिखाई देते हैं; लेकिन निराशाके वे विचार आशा उपजाने के लिए होते हैं। किसी भी मजदूर अथवा कार्यकर्ताको (‘भारत सेवक‘ शब्द तो बहुत बड़ा है, भाई मोहनलालके पत्रपर टीका करते समय ‘मजदूर‘ और ‘कार्यकर्ता’ शब्द कलमसे खुद-ब-खुद निकलते हैं) अन्य लोगोंकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। हमें संसार-भरका काजी नहीं बनना है। हमें यह विचार भी नहीं करना चाहिए कि हमारे आसपासके लोग तो कुछ नहीं कर रहे हैं। उत्साहका अर्थ है स्वयं हममें वाष्पका होना। हम जिस तरह यन्त्रमें भापको भरकर तथा उसे इच्छापूर्वक छोड़ अथवा रोककर रेलगाड़ीको मनचाही गति प्रदान कर सकते हैं उसी तरह यदि:

  1. अण्णा हरिहर शर्माको अंग्रेजीमें निमन्त्रणपत्र भेजनेका।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।