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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकता। इस समय तो सिर्फ यही सुझाव दिया जा सकता है कि ऐसी पत्रिकाएँ प्रकाशित की जानी चाहिए और जगह-जगह बेची जानी चाहिए, जिनमें खादी क्या है, यह बताया गया हो। जो लोग खादी न पहने हों उन्हें स्वयंसेवक अत्यन्त विनम्रतापूर्वक यह पत्रिका दें। लकड़ीकी बड़ी-बड़ी पट्टिकाओंपर खादीके परिचय-वाक्य लिख लेने चाहिए और भाड़ेके नौकरोंको नहीं वरन् बड़े-बड़े कार्यकर्ताओंको उन पट्टिकाओंको अपने गलेमें डालकर निकलना चाहिए। मैं जब बाहर निकलनेकी स्थितिमें होऊँगा तब मैं इन कार्यकर्ताओं में अपना नाम दर्ज करवा दूँगा। मैं जबतक यहाँ हूँ तबतक अहमदाबादके बाजारोंमें इन पट्टिकाओंको लेकर रोज एक घंटे घूमनेके लिए तैयार हूँ। मैं इस कामको दो महीने बाद कर सकूँगा। इस बीच यह काम तो तत्काल शुरू किया जा सकता है। मैं यहाँ ऐसी पत्रिकाका मसविदा दे रहा हूँ। कोई अधिक अनुभवी प्रचारक, करना चाहे तो इसमें और भी सुधार कर सकता है।

भाइयो और बहनो, सावधान!

खादीका अर्थ है हाथसे कते सूतका हाथसे बुना कपड़ा। कुछ व्यापारी मिलोंके सूतके कपड़ेको मिलकी खादी अथवा स्वदेशी खादी कहकर बेचते हैं। इससे हमारा मतलब पूरा नहीं होता। जो लोग सचमुच यह चाहते हैं कि गरीबोंका पेट भरे उन्हें असली खादी ही पहननी चाहिए।

यह पोस्टर अथवा इस तरहके अन्य पोस्टर भी दीवारोंपर चिपकाये जा सकते हैं। इस सम्बन्धमें यहाँकी नगरपालिका क्या कर सकती है, यह तो वल्लभभाई ही जानें।

केनियामें सत्याग्रह

मोम्बासासे एक संवाददाता लिखते हैं:[१]

पत्रमें दी गई यह अन्तिम सूचना सच नहीं हो सकती। यदि सरकार किसीको जेलमें रखती है तो उसका उसको भोजन देना लाजिमी है। किन्तु हवालातियोंको बाहरसे भोजन मंगानेकी अनुमति होती है। इस नियमके अन्तर्गत केनियाके सत्याग्रही भी अपने घरोंसे भोजन मँगाते हैं, यही इस सूचनाका अर्थ हो सकता है।

जब हम इन लोगोंके जेलमें जानेकी खबर पढ़ते हैं तब हमें खयाल आता है कि हम कितने आगे बढ़ गये हैं। हमारे भाई जेल गये हैं, हम दस वर्ष पहले ऐसा समाचार पढ़कर उत्तेजित हो जाते थे। किन्तु आज हम इस तरहकी कैदकी खबरका खयाल भी नहीं करते क्योंकि अब हम यहाँ जेलोंमें होनेवाले कष्टोंके अभ्यस्त हो गये हैं। हम समझ गये हैं कि स्वेच्छासे कष्ट सहे बिना सुख नहीं मिलता। मैं मानता हूँ कि केनियाके सत्याग्रहियोंके लिए कैद जेलोंके दुःखोंको सहनेको तालीम है। इतने भरसे उनपर होनेवाले अत्याचारोंके बन्द होनेकी सम्भावना कम ही है। उन्हें अभी और भी ज्यादा दुःख झेलने होंगे अथवा जबतक हिन्दुस्तान स्वराज्य प्राप्त

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।