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काठियावाड़ियोंके प्रति अन्याय

होती थी; बल्कि तिकड़मका परिणाम होती थी। फलतः रजवाड़ोंकी नौकरीमें दाखिल हुए नहीं कि राजनीतिक दाँव-पेचोंकी शिक्षा शुरू हो गई।

अब हमारे बीच नया वातावरण तैयार हो रहा है। हम वाचालता और गुप्त योजनाओंको छोड़ना चाहते हैं। इसलिए कुछ कर्मनिष्ठ काठियावाड़ी इस कृत्रिम वातावरणको दूर करनेके कार्यमें जुटते जा रहे हैं; तथापि सामान्य राजनीतिज्ञ तो अब भी पुराने वातावरणके गुलाम हैं।

इस सम्बन्धमें मेरे लिखनेका हेतु यही था कि काठियावाड़के राजनीतिज्ञ इस स्थितिको समझकर इसमें तुरन्त सुधार करें और मेरा यह हेतु आज भी है।

काठियावाड़ियोंके (अर्थात्) जिन राजनीतिज्ञोंपर यह लागू होती है उनकी आलोचना सत्याग्रही गालियोंका एक भाग है। इसलिए ऐसी टीका तो मुझ जैसे लोग ही कर सकते हैं। जिनके मनमें काठियावाड़ियोंके प्रति द्वेषभाव हो वे ऐसा कर ही नहीं सकते। लेकिन यदि कोई काठियावाड़ियोंसे द्वेष रखनेवाला व्यक्ति मेरा अनुकरण करता हुआ यह सब कहे तो भी क्या हुआ? इससे जो तिकड़मबाज नहीं है वे शान्त रहेंगे और हँसेंगे किन्तु जो तिकड़मबाज हैं, बातूनी हैं, उन्हें भी सच्ची बात सुनकर क्रोध क्यों आना चाहिए? हमारा शत्रु हमारे जितने दोष देखता है उतने मित्र नहीं देख पाता। मित्रके दोषोंको देखते हुए भी उसपर पूर्ण प्रेमभाव रखना सत्याग्रहीका विशिष्ट लक्ष्य है और यह दुष्प्राप्य है। इसलिए सामान्य रूपसे यह कहा जा सकता है कि शत्रु हमारे दोषोंको जितनी अच्छी तरह बता सकता है उतनी अच्छी तरहसे मित्र नहीं बता सकता। इसलिए काठियावाड़ियोंको मेरी सलाह है कि वे शत्रुकी टीका विनयपूर्वक और सम्मानपूर्वक सुनें, उसपर विचार करें तथा उसमें जितना सत्य हो उसे ग्रहण करें।

मेरी आलोचनाका अनुकरण अन्य लोग करेंगे, मैं इस भयसे आलोचना करना बन्द कर दूँ, मुझसे ऐसी अपेक्षा तो कोई नहीं करेगा। इसलिए काठियावाड़ियोंकी आलोचनाका निमित्त लेकर गुजराती मात्रसे मेरा निवेदन है कि वे वाचालता छोड़कर काममें निरत हो जायें। काठियावाड़ी यदि मुझे खास अपना आदमी मानते हैं तो वे मेरी बात सुनें और उसमें से सार ग्रहण करें। मेरे मनमें इस बातको लेकर अवश्य ही कुछ अभिमान है कि वे औरोंकी नहीं तो मेरी बात अवश्य सुनेंगे। लेकिन मैं काठियावाड़ और गुजरातमें कोई भेद नहीं मानता। दोनोंके निवासी गुजराती ही है। काठियावाड़ छोटा गुजरात है। गुजरातमें काठियावाड़ और कच्छ आदि मिला दें तो महा गुजरात बन जाता है। महा गुजरात हिन्दुस्तानका एक छोटा अंग है। इस अंगकी भाषा में ज्यादा जानता हूँ। यह अंग मुझे ज्यादा अच्छी तरहसे जानता है। इसलिए मुझे इसको कड़वी दवा पिलानेका अधिक अधिकार है। महा गुजरात यदि कड़वी दवा न पियेगा तो मैं इसे और किसे पिलाऊँगा? इसके अलावा मैं अपनी दवाकी परीक्षा करने किसके पास जाऊँगा?

अन्तमें मेरी इच्छा है कि काठियावाड़ी राजनीतिज्ञ वाचालतापर पूर्ण संयम रखते हुए चालबाजी छोड़कर तथा चुप रहकर काम करते हुए मेरी आलोचनाको
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