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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन उसने राष्ट्रीय भावनाको प्रधानता दी है। जहाँ यह आदर्श है कि शिक्षाका उपयोग देश-सेवामें किया जाये और धनोपार्जनको गौण स्थान दिया जाये वहाँ “व्यक्तिगत उत्कर्ष” के लिए अवकाश ही नहीं है। "व्यक्तिगत उत्कर्ष" की भावनाका त्याग करनेवाले मनुष्यको ही विद्यापीठका आश्रय लेना चाहिए। गुजरातमें अथवा समस्त हिन्दुस्तानमें इस भावनाने अभी गहरी जड़ नहीं पकड़ी है; इसलिए यदि विद्यापीठके प्रारम्भिक कालमें ऐसी भावनासे युक्त विद्यार्थी कम हों तो यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। आश्चर्य और प्रसन्नताकी बात तो यह है कि विद्यापीठकी छत्रछायामें हजारों विद्यार्थी अक्षरज्ञान प्राप्त कर रहे है तथा इसके साथ-साथ देश-सेवाकी भावनाको विकसित कर रहे हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-६-१९२४

८९. गुरुकुल कांगड़ीमें चरखा

इस गुरुकुलके विद्यार्थियोंको मैंने उनके वार्षिकोत्सवके समय एक खत भेजा था। उसके उत्तरमें एक खत कई दिन हुए मिला है। गुरुकुलके बालकोंका प्रेम चरखेपर कैसा है, यह जाहिर करनेके लिए मैं खतका थोड़ा हिस्सा पाठकोंके सामने पेश करता हूँ:

यद्यपि आपके सन्देशके लिए यह उत्तर बहुत ही अपूर्ण है, यह हम अच्छी तरह समझते हैं――हम अपने काते हुए इस थोड़े-से सूतको श्रद्धापूर्ण भेंट आपके पूज्य चरणोंमें रखना चाहते हैं। यह सूत इसी राष्ट्रीय सप्ताहमें (७ अप्रैलसे १३ अप्रैल तक) सात दिनतक चौबीस घंटे अखण्ड सतचक्र चलाकर हमने इसी प्रयोजनके लिए कातकर तैयार किया है कि हमारी तुच्छ भेंट स्वीकार हो। इसमें (चतुर्थ श्रेणीके) हममें से छोटे बालकोंका काता हुआ भी कुछ सूत अलग रखा है। यद्यपि यह अखण्ड चरखा चलाकर नहीं काता गया है तथापि हम समझते हैं कि आपसे प्रेम रखनेवाले ये छोटे बालक अवश्य ही आपके प्रेमपात्र हैं। अतः इनका प्रेमपूर्वक काता हुआ यह राष्ट्रीय सप्ताहका सूत भी आपके चरणार्पि होनेके योग्य ही है।


हिन्दी नवजीवन, १-६-१९२४