पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९१
टिप्पणियाँ

बहुत कठिन भी नहीं है । यदि हम पतली चपातियाँ चाहते हैं तो उन्हें पतला बेलते हैं, न कि उनकी खोज में और कहीं जाते हैं । उसी प्रकार, यदि हमें महीन कपड़ा चाहिए तो हमें महीन सूत कातना चाहिए। यदि महिलाएँ इतनी आलसी हैं कि महीन सूत नहीं का सकतीं तो उन्हें खद्दरके भारी होने की शिकायत करनेका कोई अधिकार नहीं है और अगर हम बच्चोंको दिखावे के लिए नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए कपड़े पहनाते हैं तो उनके लिए खद्दर बहुत ही उपयुक्त कपड़ा है । खद्दर उतनी ही विविधता दे सकती है, जितना मिलका कपड़ा । किन्तु इसके लिए आवश्यकता है अपने पूर्वजोंके मौलिक कौशलको पुनरुज्जीवित करनेकी । खद्दर आज मिलके कपड़े से महँगा है, क्योंकि अभी हमने इस राष्ट्रीय कुटीर उद्योगको दृढ़ आधारपर प्रतिष्ठित नहीं किया है। किन्तु यदि हम स्वतन्त्र होना चाहते हैं तो निश्चय ही हमें मूल्यका विचार नहीं करना चाहिए । खद्दर पहननेवाले सैकड़ों लोगोंका यह अनुभव है कि यद्यपि प्रति गजके हिसाब से खद्दर महँगा है, फिर भी चूंकि उसके प्रयोगसे उनकी रुचि सादी हो जाने के कारण उन्हें कम कपड़े की जरूरत पड़ती है, इसलिए खद्दर पहिनना सस्ता ही पड़ता है। गरीबों के लिए वह महँगा नहीं होता, क्योंकि वे स्वयं कपास पैदा करके उसकी ओटाई, धुनाई और कताई करके खुद ही कपड़ा भी बुन सकते हैं । यदि बारीकी से देखें तो इस दलीलका जवाब यह है कि लोग पंजाबी बहनों-के बीच निरन्तर प्रचार कार्य करें और उनसे कहें कि वे २० नम्बरसे कमका सूत न कातें । कोई भी ऐसा व्यक्ति जो कताईके काम में सिद्धहस्त हो, उनके तकुओंको इस प्रकार बैठा सकता है, जिससे वे बहुत अधिक अतिरिक्त श्रम और समय लगाये बिना ऊँचे नम्बरका सूत कात सकती हैं ।

कातनेवाला किसे कहते हैं ?

लोग बहुधा मात्र धागा खींच सकने के बलपर ही कहने लगते हैं कि वे कात लेते हैं। लेकिन यह खयाल गलत है । नानबाई वह है, जो सेंककर ऐसी रोटी तैयार करे जो खाई और पचाई जा सके। मगर उसका सिर्फ रोटी सेंकना भर जानना काफी नहीं है । उसे उन सभी प्रक्रियाओंका ज्ञान होना चाहिए जिनके जरिये आटेसे रोटी बनाई जाती है और उसे आटेकी विविध किस्मोंकी भी जानकारी होनी चाहिए; और सचमुच हर नानबाईको इस सबका ज्ञान होता है । इसी प्रकार कातनेवाला वह है जो एक-सा और ठीक बटा हुआ ऐसा सूत काते, जो बिना कठिनाई के बुना जा सके । यदि धागा आवश्यकता से कम या अधिक बटा हुआ हो तो वह बुनाईके कामका नहीं होगा और चूंकि बिना अच्छी पूनियोंके ठीक कातना सम्भव नहीं है, इसलिए कातनेवालेको पिजाई करना और पूनी बनाना भी आना चाहिए। उसे विभिन्न किस्मकी कपासोंके रेशोंके बारेमें भी बता सकना चाहिए तथा जितने नम्बरका सूत कातनेके लिए उससे कहा जाये -- मान लीजिए ३० नम्बरका सूत कातनेको कहा जाये तो -- उतने नम्बरका सूत उसे कात सकना चाहिए । इसी प्रकार जो बढ़ई अपने औजारोंको तेज नहीं कर सकता अथवा उनकी मरम्मत नहीं कर सकता, वह किसी कामका बढ़ई नहीं है । उसी प्रकार वह कातनेवाला भी किसी कामका नहीं है, जो अपनी धुनकी या चरखेकी मरम्मत नहीं