पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम आदर्श (और सरकार द्वारा अपेक्षित) आचरण करके वहाँ भी उसके मनका भ्रम दूर कर दें ।

पता नहीं हममें से सभी को इस बातकी प्रतीति है या नहीं कि असहयोग हुल्लड़-बाजी करके प्रतिपक्षीको भयभीत करनेकी नहीं, बल्कि उसके हृदयको छूने और उसकी बुद्धिको प्रभावित करनेकी प्रक्रिया है । अहिंसात्मक आन्दोलनमें हुल्लड़बाजी करके डर फैलाने के लिए कोई स्थान ही नहीं है ।

मैंने सत्याग्रही बन्दियोंकी तुलना अकसर युद्धबन्दियोंसे की है। सिपाही जब शत्रु द्वारा बन्दी बना लिये जाते हैं तो वे शत्रुके साथ मित्रवत् व्यवहार करने लगते हैं । यदि कोई सिपाही युद्धबन्दीके रूपमें शत्रु के साथ धोखेबाजी करे तो यह उसके लिए कलंक-की बात होगी । मेरी दलील में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार सत्याग्रही कैदियों को युद्धबन्दी नहीं मानती । यदि हम युद्धबन्दियों-जैसा आचरण करें तो शीघ्र ही हमारे साथ सम्मानका व्यवहार किया जाने लगेगा । जेलोंको हमें ऐसी निष्पक्ष संस्था बना देनी चाहिए जिसमें हमारा सरकार के साथ सहयोग कर सकना उचित ही नहीं, कुछ हदतक धर्म बन जाता है ।

यदि हम एक ओर जानबूझकर जेलके नियमोंको तोड़ें और साथ ही दूसरी ओर सजा देने और कड़ाई बरतने की शिकायत करें तो हमारा यह आचरण बहुत असंगत होगा और इसे शायद ही आत्मसम्मानपूर्ण माना जाये । उदाहरणके लिए, ऐसा नहीं हो सकता कि हम तलाशीका विरोध और उसकी शिकायत भी करें और साथ ही अपने कम्बलों और कपड़ोंमें निषिद्ध चीजें भी छिपाकर रखें। उस सत्याग्रहमें जिसे मैं जानता हूँ ऐसी कोई चीज नहीं है जिसकी आड़ लेकर हम किसी विशेष प्रसंगके आ जाने-पर झूठ बोल सकते हों अथवा कोई दूसरी धोखेबाजी कर सकते हों ।

जब हम यह कहते हैं कि यदि हम जेल अधिकारियोंका चैनसे बैठना मुश्किल कर दें तो सरकार सुलहका हाथ बढ़ानेपर मजबूर हो जायेगी, तब इसमें दरअसल या तो सरकारकी सूक्ष्म प्रशंसा हो जाती है या फिर हम उसे बहुत भोली समझ बैठते हैं। जब हम ऐसा मान लेते हैं कि हम जेल अधिकारियोंका चैनसे बैठना मुश्किल कर देंगे तो भी सरकार चुपचाप बैठी देखती रहेगी और हमें बिलकुल पस्त कर देनेवाली कड़ी सजा देने में आगा-पीछा करेगी, तब यह सचमुच सरकारकी प्रकारान्तरसे प्रशंसा ही हो जाती है । वैसा माननेका, मतलब तो यह है कि हम प्रशासकों को इतना शालीन और दयालु समझते हैं कि हमारे द्वारा दण्डके योग्य पर्याप्त कारण उपस्थित किये जाने पर भी वे हमें कड़ी सजा देंगे ही नहीं। सच तो यह है कि अवसर आनेपर वे मर्यादाके समस्त विचारको ताकपर रखकर सिर्फ नियम-विहित सजा ही नहीं, बल्कि नियम विरुद्ध सजा देने में भी संकोच नहीं करेंगे और न आज कर ही रहे हैं ।

यह मेरा सुविचारित दृढ़ मत है कि यदि हमने बराबर ऐसी ईमानदारी और मर्यादा के साथ काम किया होता जो सत्याग्रहियोंके लिए शोभनीय है तो सरकारका सारा विरोध समाप्त हो जाता और इतने अधिक कैदियों द्वारा ऐसा प्रामाणिक व्यवहार करनेका परिणाम कमसे-कम इतना तो अवश्य होता कि सरकार लज्जित