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जेल के अनुभव - ७

होकर यह स्वीकार कर लेती कि ऐसे खरे और निर्दोष लोगोंको इतनी बड़ी संख्यामें जेल में बन्द करके उसने भूल की है। क्योंकि उसका क्या यही आरोप नहीं है कि अहिंसा तो हिंसा करनेके लिए एक आवरण मात्र है ? इसलिए क्या यह सच नहीं है कि जब कभी हम कोई हुल्लड़बाजी करते हैं तो दरअसल क्या सरकारके मनका काम ही नहीं कर जाते ?

इसलिए मेरे विचारसे तो जेल जानेपर सत्याग्रहियोंके रूपमें हमारा कर्तव्य है कि :
१. हम नितान्त प्रामाणिक व्यवहार ही करें;
२. जेल अधिकारियोंके व्यवस्था कायम रखनेके कार्यों में उनसे सहयोग करें;
३. सभी उचित अनुशासनोंका पालन करके अन्य कैदी भाइयोंके लिए उदाहरण पेश करें;
४. हम किसी भी प्रकारकी रियायत न माँगें; और स्वास्थ्य की दृष्टिसे नितान्त आवश्यक होनेकी परिस्थितिको छोड़कर ऐसी कोई विशेष सुविधा पानेका हक न जतायें जो मामूली से मामूली कैदीको प्राप्त नहीं है;
५. जिस चीजकी हमें ऐसी जरूरत हो उसकी माँग करनेमें कभी न चूकें और अगर वह चीज न मिले तो क्षुब्ध न हों;
६. हमें जो काम दिया जाये उसे अपनी शक्ति-भर करें ।

हमारे ऐसे ही व्यवहारसे सरकारकी स्थिति कठिन और विषम बन सकती है । उसके लिए ईमानदारी के बदले ईमानदारी बरतना कठिन होगा क्योंकि एक तो उसमें निष्ठाका अभाव है, दूसरे चूंकि उसने ऐसे अवसरकी कल्पना भी नहीं की । हमारी ओरसे वह हुल्लड़बाजी की ही उम्मीद करती है और दुगुनी हुल्लड़बाजी करके उसे दबा देती है । अराजकतापूर्ण अपराधका सामना तो उसने सफलता के साथ कर लिया; लेकिन अहिंसाके सामने तो उसे अभीतक सिवा झुक जाने के कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है ।

सत्याग्रही इस विचारसे प्रेरित होकर जेल जाता है कि वह नम्रतापूर्वक कष्ट सहकर अपना ध्येय हस्तगत कर लेगा । वह ऐसा मानता है कि किसी न्यायसम्मत उद्देश्य-के लिए चुपचाप कष्ट सह लेनेका अपना एक खास गुण हैं, जो तलवारके मुकाबिले लाख दर्जे ऊँचा है। इसका मतलब यह नहीं है कि जब हमारे साथ हमारे आत्मसम्मान-को ठेस पहुँचानेवाला व्यवहार किया जाये तब भी हम विरोध न करें । उदाहरण के लिए, यदि कोई अधिकारी हमें गालियाँ दे या हमारा खाना ठीकसे परोसकर देने के बजाय हमारी ओर फेंक दे, जैसा कि अकसर किया जाता है, तो हमें अपने प्राणोंकी बाजी लगाकर भी उसका विरोध करना चाहिए । गालियाँ देना और अपमान करना अधिकारीके कर्त्तव्य-क्षेत्र में नहीं आता। इसलिए, हमें ऐसे व्यवहारका विरोध करना ही चाहिए । लेकिन हम तलाशीका विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि यह तो जेलका एक नियम है ।

मैंने मुक कष्ट-सहनके बारेमें जो बातें कही हैं, उनका कोई यह अर्थ भी न लगाये कि सत्याग्रहियों-जैसे निर्दोष कैदियोंको पक्के अपराधियोंकी श्रेणीमें रखने के खिलाफ भी कोई आन्दोलन नहीं किया जाना चाहिए। हाँ, इतना अवश्य है कि कैदी होने के