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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नाते हम किसी कृपाकी याचना नहीं कर सकते। हमें पक्के अपराधियोंके साथ रहने में ही सन्तोष मानना चाहिए; बल्कि इस तरह हमें उनमें नैतिक सुधार करनेका भी जो अवसर मिलता है, उसका स्वागत करना चाहिए । फिर भी, अपनेको सभ्य कहनेवाली सरकारसे यह आशा तो की ही जाती है कि वह अत्यन्त स्वाभाविक विभाजनोंकी आवश्यकता को समझेगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-६-१९२४

९८. मणिलाल गांधीके पत्रपर टिप्पणी

मेरे पुत्र मणिलाल गांधीके एक पत्रका निम्नलिखित अनुवाद पाठकों को पसन्द आयेगा । पत्र में श्रीमती नायडूके दक्षिण आफ्रिकामें किये गये बहुत ही ठोस कामका वर्णन है ।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ५-६-१९२४

९९. सी० एफ० एन्ड्रयूजके पत्रपर टिप्पणी

श्री एन्ड्रयूजने सीधे-सादे और सुन्दर-सुडौल भील बच्चोंको खद्दरके कुरते और टोपियाँ पहने देखा था । उसे देखकर उन्होंने अपने एक व्यक्तिगत पत्र में मुझे आड़े हाथों लिया है। पूछा है कि " उनके लिए आप खद्दरकी लंगोटी ही क्यों काफी नहीं मानते ? " इसका उत्तर देनेके लिए तो अमृतलाल ठक्कर ही सबसे अधिक उपयुक्त हैं । यदि मैं अपनी बात कहूँ तो मुझे लंगोटी ही ज्यादा अच्छी लगने लगी है, इतने सारे कैदियोंको सिर्फ जाँघिये पहने देखनेके बाद तो और भी ज्यादा । परन्तु श्री ठक्कर के सामने समस्या इतनी सरल-सी नहीं है। वे किसी जेलके नहीं बल्कि एक स्कूलके सुपरिन्टेन्डेन्ट हैं, जहाँ उनका काम बालकों और बालिकाओं में निर्भीक पौरुष और नारीत्वकी भावना पैदा करना है। इन खुशदिल शरारती बच्चोंके दिमाग में

  1. १. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उसमें सरोजिनी नायडूको दक्षिण आफ्रिका यात्राके अच्छे परिणामों का उल्लेख था, जिनमें वर्ग क्षेत्र विधेयकका खतम किया जाना भी शामिल था । उसमें कहा गया था : “ श्रीमती नायडूके सुझावपर डर्बनमें दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेसकी बैठक हुई और श्रीमती नायडूको अध्यक्षता में बहुत अधिक काम किया गया और वह भी एक ऐसी पवित्रताको भावनासे, जैसी पहले कमी नहीं देखी गई। . . .आपके जानेके बादसे यहाँके भारतीयोंकी दशा निराश्रित बालकों-जैसी हो रही है । पर श्रीमती नायडूने एक हद दर्जेकी निराशापूर्ण परिस्थितिको भी अत्यन्त ही आशाप्रद परिस्थितिमें बदल दिया है।