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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहा हूँ। सारी स्त्री जातिमें मुझे वही दृष्टिगोचर होता है। इसीलिए मैं सभी स्त्रियोंको माँ या बहनके बराबर मानता हूँ। मैं सभी पुरुषोंमें भी उसीको देखता हूँ; इसलिए सबको अवस्थाके अनुसार पिता, भाई या पुत्रकी तरह मानता हूँ। मैं उसी रामको भंगी और ब्राह्मणमें देखता हूँ। इसलिए दोनोंका अभिवादन करता हूँ।

राम पास रहता हुआ अब भी शायद मुझसे दूर हो। इसीलिए मुझे उसको 'तू' कहकर पुकारना पड़ता है। जब उससे मेरा चौबीसों घंटे तादात्म्य रहेगा तब तो मुझे उसे 'तू' कहने की भी जरूरत न रहेगी। दूसरे लोग मेरी माँके लिए 'तू' का प्रयोग नहीं करते थे। वे तो अनेक आदरसूचक विशेषणोंका प्रयोग करते थे। इसी तरह अगर राम मेरा न होता तो मैं भी जरूर उसका अदब-लिहाज रखता। परन्तु वह अब मेरा है और मैं उसका गुलाम हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि वैष्णव जन उससे जुदा होने का बोझ मेरे सिरपर न रखें। जिस प्रेमके लिए शिष्टाचारकी जरूरत हो क्या वह प्रेम है? तमाम भाषाओंमें और तमाम धर्मोमें ईश्वरको 'तू' सर्वनामसे ही सम्बोधित किया गया है।

द्राविड़ प्रान्तमें अव्वाई माई नामक मीराबाई-जैसी एक महा तेजस्विनी भक्त स्त्री थी। वह नित्य विष्णु मन्दिरमें बैठी रहती थी। वह कभी अपनी पीठ मूर्तिकी तरफ कर लेती और कभी अपने पैर उसके सामने फैलाकर बैठ जाती। एक दिन कोई भावुक किन्तु बाल-भक्त मन्दिरमें दर्शन करनेके लिए आया। ईश्वरके साथ अव्वाई माईका कितना गहरा सम्बन्ध था, यह बात उसे मालूम न थी। उसने आँखें तरेरकर अव्वाई माईको कुछ सत्याग्रही गालियाँ सुनाई। अव्वाई माई खिलखिलाकर हँस पड़ी। उसके हास्यसे सारा मन्दिर गूँज उठा। अव्वाई माई उस भक्तसे बोली---"बेटा! आ यहाँ बैठ जा। बच्चा! तू कहाँसे आया है? तूने मुझे तीखी बात कही; परन्तु तू एक बात बता। मैं बूढ़ी हो गई; परन्तु मुझे कोई जगह ऐसी नहीं मिली जहाँ भगवान् न हो। जहाँ- कहीं मैं पैर फैलाती हूँ वही वह सामने खड़ा दिखाई देता है। अब यदि तू कोई जगह बता दे जहाँ वह न हो तो मैं जरूर उसी ओर पैर फैलाऊँगी।"

वह बाल-भक्त था विनयी। अज्ञानके कारण अव्वाई माईको पहचान नहीं पाया था। इतना सुनते ही वह गद्गद्ग हो गया। उसकी आँखोंसे मोती-जैसे आँसू बह उठे और माईके अँगूठोंपर टपकने लगे। माईने अपने पैर खींचे; किन्तु उसने उसके पैर पकड़ लिये और कहने लगा; "माँ मुझसे भूल हुई। मुझे क्षमा करो, मेरा उद्धार करो।" माईने पैर खींच लिये और उसे अपनी छातीसे लगाकर चूमने लगी। फिर खिलखिलाई और कहने लगी---"जा, इसमें क्षमा करनेकी क्या बात है? तू तो मेरा बेटा है। मेरे ऐसे कितने ही बेटे हैं। तू समझदार है। इससे तेरे मनमें ज्यों ही कुछ शंका उठी, तूने मुझसे कह दी। जा, श्रीरंग भगवान तेरी रक्षा करेंगे। परन्तु बेटा, इस माँकी याद रखना।"

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ५-६-१९२४