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१०१. टिप्पणियाँ

एक भूल

मैंने 'नवजीवन' में लिखा था कि मजदूरोंके बच्चोंके स्कूलोंके सब बच्चे खादीके ही कपड़े पहनते हैं। किन्तु ' मजूर सन्देश' में ऐसी कोई खबर नहीं छपी है। उसमें तो यही है कि इन बच्चोंमें से अधिकांश खादी के कपड़े पहनने लगे हैं। उक्त भूल मेरी भूल थी। उतावलीमें ऐसी भूलें हो जाती हैं, पाठक यह समझकर मुझे क्षमा करेंगे। 'मजूर सन्देश' के सम्पादक अतिशयोक्ति करके कोई विशेष लाभ उठानेकी इच्छा नहीं रखते। अतिशयोक्तिसे कार्य नहीं बढ़ता। वह वस्तुतः पिछड़ता है। जो स्थिति है नहीं, "मौजूद है", कहनेसे वह मौजूद नहीं हो जाती। हिन्दुस्तानकी भुखमरी एक तथ्य है। यह कोई करुण रस प्रधान नाटक नहीं है। हिन्दुस्तानके करोड़ों हड्डियोंके ढाँचे करुणाकी मूर्ति बने हुए हैं। हम उनमें नाटक खेलकर रक्त-मांस नहीं भर सकते। स्वराज्य भी सच्चा खेल है, इसलिए हम जितना करेंगे उतना ही फल मिलेगा। असली खादी एक गज बिकेगी तो उससे हिन्दुस्तानके गरीबोंकी जेबोंमें आठ दस आने पैसे जायेंगे।

उर्दूमें 'यंग इंडिया'

एक मुसलमान भाई कराचीसे लिखते हैं, "आप गुजरातियोंके लिए गुजराती 'नवजीवन', हिन्दी भाषियोंके लिए 'हिन्दी नवजीवन' और अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगोंके लिए अंग्रेजीमें 'यंग इंडिया' निकालते हैं। मुसलमानोंकी सात करोड़की आबादी है; और उनमें से अधिकतर केवल उर्दू जानते हैं। क्या आप उनके लिए 'नई जिन्दगी' अर्थात् 'उर्दू नवजीवन' प्रकाशित करके उन्हें आभारी नहीं करेंगे? यदि ऐसा किया जा सके तो हिन्दू-मुस्लिम झगड़े कम होंगे और दोनोंके बीच मैत्रीकी गाँठ मजबूत होगी। जबसे गुजराती 'नवजीवन' आरम्भ हुआ है तबसे मेरे मनमें ऐसी विस अवश्य पैदा हुई है; लेकिन मुझे उसकी आवश्यकताके बारेमें सन्देह है। मैं ऐसा पत्र नहीं निकालना चाहता जिसका खर्च हमारे सिर पड़े। उर्दू नवजीवन पढ़नेवाले मुसलमान भाइयोंके अच्छी संख्यामें मिल जानेपर ही 'उर्दू नवजीवन' निकाला जा सकता है। मैंने मुसलमान भाइयोंसे बातचीत की है। उनका अभिमत 'उर्दू नवजीवनके' विरुद्ध है। मैं इसीलिए शान्त हो गया हूँ। उन्होंने मुझे बताया है कि उर्दूके अखबार 'यंग इंडिया' का खासा हिस्सा ले लेते हैं।

एक निमन्त्रण पत्र

एक भाई अकोलासे लिखते हैं कि यहाँसे लगभग २० मील दूर एक सज्जन रहते हैं । वे नागपुरके कांग्रेस अधिवेशनके[१] बादसे खादीका ही इस्तेमाल करते हैं। जो मनुष्य पिछले दो सालसे खादी पहन रहा हो, वे उसीके हाथका बना और परोसा

 
  1. दिसम्बर १९२० में।