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भेंट: 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधिसे

वस्तु नहीं देखी है जिससे मुझे श्री दासकी राय मालूम हो सके। इसलिए यदि आप कोई ऐसा काल्पनिक प्रश्न पूछें कि किसी व्यक्तिका उद्देश्य कितना ही भला क्यों न हो, उसके लिए किसीकी हत्या करना मैं ठीक मानूँगा या नहीं तो उसका उत्तर मैं अवश्य दूँगा। मेरा दो टूक उत्तर यही होगा: कदापि नहीं। आपके द्वारा पूछे गये प्रश्नका उत्तर मैं जान-बूझकर ही सीधे-सीधे नहीं दे रहा हूँ। कारण यह है कि ऐसे बड़े-बड़े सम्मेलनोंकी कार्यवाहियोंके जो संक्षिप्त विवरण तार द्वारा भेजे जाते हैं, उनको मैं भरोसेके लायक नहीं मानता, फिर चाहे वे समाचार पक्षपातरहित व्यक्ति द्वारा ही क्यों न भेजे गये हों। इसलिए जबतक मुझे पूरी तरहसे यह न मालूम हो जाये कि बंगाल-सम्मेलनमें क्या हुआ और श्री दासने उसमें ठीक-ठीक क्या कहा, तबतक मैं उनके रुखके बारेमें कोई मत प्रकट न करूँगा, और सच तो यह है कि मैं जब एक बार उनसे जुहू तटपर मिला था तो उन्होंने मुझे आगाह कर दिया था कि मैं उनके खिलाफ कही गई किसी भी बातपर यों ही यकीन न कर लूँ, क्योंकि उन्होंने बताया था कि उनका प्रभाव कम करनेकी साजिश चल रही है।

क्या आपका खयाल है कि वह प्रस्ताव नैतिक अथवा राजनीतिक दृष्टिसे या आपके अहिंसा सिद्धान्तकी दृष्टिसे उचित ठहराया जा सकता है?

मेरी रायमें, अहिंसाके मेरे अपने सिद्धान्तसे किसी भी हत्याका मेल नहीं बैठ सकता और राजनीतिक हत्याको नैतिक अथवा राजनीतिक दृष्टिसे उचित ठहराया जा सकता है या नहीं, यह तो अलग-अलग व्यक्तिगत दृष्टिकोणों और मान्यताओंकी बात है। मैं ऐसे बहुत-से भारतीयों और यूरोपीयोंको भी जानता हूँ, जो मानते हैं कि राजनीतिक कारणोंसे की गई किसी हत्याको ऊँचेसे-ऊँचे नैतिक मानदण्डसे उचित ठहराया जा सकता है। स्पष्ट ही है कि मैं इस दृष्टिकोणसे कतई सहमत नहीं।

लोक-मानसपर और खासकर निरक्षर और अज्ञानी लोगोंके मनपर इस प्रस्तावका प्रभाव क्या पड़ेगा इसके बारेमें आपका क्या मत है?

श्री गांधीने कहा कि जबतक मैं इस मामले में श्री दासके विचारोंको खुद उन्होंसे बातचीत करके न जान लूँ, तबतक मैं इस सम्बन्धमें कुछ भी नहीं कह सकता। हाँ, अगर प्रस्तावके शब्द ठीक वही हैं, जैसे मुझे दिखाये गये हैं तो मैं अवश्य ही उसे दुर्भाग्यपूर्ण और कांग्रेसके सिद्धान्तोंसे असंगत मानता हूँ। ऐसे प्रस्तावसे अपढ़ और बेसमझ लोग गुमराह हुए बिना न रहेंगे।

क्या आपका खयाल है कि बंगाल प्रान्तीय सम्मेलन द्वारा पारित इस प्रस्तावमें निहित सिद्धान्तको यदि कोई राजनीतिक दल अपना ले तो वह भारतके हितकी दृष्टिसे लाभप्रद रहेगा?

मैं जानता ही नहीं कि प्रस्तावमें है क्या-क्या। आपने मुझे जो तार दिखलाया है, उसमें प्रस्तावका पूरा पाठ तो है नहीं। लेकिन फिर भी तारमें उसका जो आशय व्यक्त किया गया है, वह यदि सही हो तो उसका अर्थ लगाना मेरे लिए कठिन होगा और क्योंकि यदि गोपीनाथ साहाका कृत्य निन्दनीय था---और मेरी तुच्छ सम्मतिके