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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुसार वह निन्दनीय है ही तो उनके कृत्यमें ऐसी और कौन चीज थी जिसे उनकी देशभक्ति माना जा सकता और जिसकी हम प्रशंसा करते? इसीलिए मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि गोपीनाथ साहाको श्रद्धांजलि अर्पित करनेमें जो सिद्धान्त निहित है, वह किसी भी राजनीतिक दलके द्वारा अपनाये जाने योग्य है।

क्या आप मानते हैं कि कांग्रेसके वर्तमान गठन और सिद्धान्तको देखते हुए वह ऐसे किसी सिद्धान्तको मान्यता दे सकती है?

नहीं।

क्या आप गोपीनाथ साहा-जैसे हत्यारोंको देशभक्तोंकी श्रेणीमें रखेंगे?

गोपीनाथ साहा-जैसेको भी मैं देशभक्त अवश्य कहना चाहूँगा, लेकिन एक अनिवार्य विशेषणके साथ ही---अर्थात् मैं उन्हें "गुमराह करनेवाला" देशभक्त कहूँगा। उनके आत्मत्याग, मृत्युके प्रति उनका उपेक्षा भाव तथा उनके देश-प्रेमपर सन्देह किया ही नहीं जा सकता, लेकिन इसी कारण मैं जहाँ उनको गुमराह करनेवाला देशभक्त कहूँगा, वहाँ उनके कामकी निन्दा भी कड़ेसे-कड़े शब्दोंमें करूँगा और मैं ऐसे किसी भी प्रस्तावका समर्थन नहीं करूँगा, जिसमें उनके इरादेकी तारीफ की गई हो। हम तो व्यक्तिके कामके बारेमें ही अपनी कोई धारणा बना सकते हैं और उसका काम यदि समाजके लिए बुरा और हानिप्रद हो तो हम उसके इरादेको ही देखकर उसकी तारीफ नहीं कर सकते। मेरी विनम्र सम्मतिमें संसारका सबसे अधिक अपकार वे ही लोग करते हैं जिनके इरादे तो नेक होते हैं लेकिन जो अपने इरादे पूरे करनेके लिए कुकृत्य करनेसे नहीं हिचकते। लोगोंके दिलोंमें युगोंसे एक अन्धविश्वास घर किये हुए है अर्थात् किसी भी साधनको उनके उद्देश्यके आधारपर ही भला या बुरा ठहराया जाना चाहिए। पर चूँकि मेरे नजदीक यह बात हाथ-कंगनकी तरह स्पष्ट है और प्रत्यक्ष है कि साधन और साध्यमें कोई भेद नहीं किया जा सकता और काम में लायेगये साधनों का स्पष्ट और प्रत्यक्ष फल ही उसका उद्देश्य होता है, इसीलिए मैं सरकारकी वर्तमान शासन-प्रणालीका और उचित-अनुचितका विवेक किये बिना की गई उसकी प्रवृत्तियोंका भी अपनी सारी शक्ति लगाकर विरोध कर रहा हूँ।

क्या मैं अब आपको उन दिनोंकी याद दिला सकता हूँ जब बंगालमें राजनीतिक अपराधोंका दौर शुरू ही हुआ था? विदेशोंमें लोगोंका खयाल है कि यदि आपने अपना अहिंसक असहयोग आन्दोलन शुरू न किया होता तो बंगालमें अराजकतावादी गतिविधियाँ बन्द न होती। उनका यह भी कहना है कि अराजकतावादी गतिविधियाँ इसी आन्दोलनके कारण स्थगित हुई थीं, लेकिन आपके जेल चले जानेपर आन्दोलनका प्रभाव कम हो जानेसे विप्लववादी लोगोंने अपनी गतिविधियाँ फिर शुरू कर दी हैं। क्या आप मेरे इस विश्लेषणसे सहमत हैं?

मैं ऐसा अवश्य मानता हूँ कि बंगालमें अराजकतावादियोंकी गतिविधियोंमें अहिंसात्मक आन्दोलनके कारण ही शिथिलता आई थी। इस आन्दोलनके लिए भी उतने ही आत्म-त्यागकी जरूरत थी जितना आत्म-त्याग दिखानेकी क्षमता विप्लवकारियोंमें हो सकती है। बंगालमें आज जो विप्लववादी प्रवृत्तियाँ फिर उभरती दिखाई पड़