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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे कथनका शाब्दिक अर्थ है। मतलब यह कि मैंने दोनों पक्षोंके हितका ध्यान रखकर ही कांग्रेस कार्यकारिणी कमेटियोंपर एकपक्षीय नियन्त्रणकी बात रखी है और यदि मैं देखूँगा कि स्वराज्यवादी लोग कांग्रेस कार्यकारिणी कमेटियोंपर अपना अधिकार जमानेकी जरा भी कोशिश करते हैं तो मैं अपने तई उनकी मुखालफत नहीं करूँगा, मैं उनको अधिकार कर लेने दूँगा। उसके बाद मैं कांग्रेसके बाहर एक दूसरा संगठन बनाऊँगा और कांग्रेसके कार्यक्रममें विश्वास रखनेवाले लोगोंसे कांग्रेससे अलग रहकर इस कार्यक्रमको पूरा करनेके लिए कहूँगा। इस तरह मैं स्वराज्यवादियोंसे कभी भी टक्कर नहीं लूँगा। मुझे उनके विरुद्ध प्रचार करनेकी कोई जरूरत ही नहीं रह जायेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
टाइम्स ऑफ इंडिया, ६-६-१९२४

१०३. मथुरादास त्रिकमजीको[१] लिखे पत्रका अंश

[ ६ जून, १९२४ ][२]

मैंने तुम्हारा कृष्णदासके नाम लिखा पत्र पढ़ लिया है। लेख 'यंग इंडिया' में देखने को मिलेगा। यदि कांग्रेसके सदस्य चरखेकी शक्तिमें विश्वास रखते हैं तो उन्हें चरखा अवश्य चलाना चाहिए। मैं बैठकमें[३] वाद-विवाद कदापि न होने दूँगा। यदि मेरे सुझाव सब लोगोंको स्वीकार नहीं हुए तो मैं वहाँ विवादमें नहीं पडूँगा।

[ गुजरातीसे ]
बापुनी प्रसादी

१०४. पत्र: वसुमती पण्डितको

साबरमती
ज्येष्ठ सुदी ५ [ ७ जून, १९२४ ][४]

चि० वसुमती,

मैं तुम्हारे पत्रकी बाट ही जोह रहा था। अब तुम्हारी तबीयत ठीक हो गई होगी। मुझे यहाँ गर्मी बिलकुल नहीं लगती। रातको तो अच्छी खासी ठंडक हो जाती है। अक्षर स्याहीसे लिखनेकी आदत डालो और सुन्दरसे-सुन्दर। किसी पुस्तक या दूसरी

 
  1. मथुरादास त्रिकमजी, गांधीजीकी बहनके नाती।
  2. प्रकाशित साधन-सूत्रके अनुसार।
  3. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी २७ जूनसे ३० जून १९२४ तक अहमदाबादमें की गई बैठकमें।
  4. पत्रमें मणि, राधा और कीकी बहनके स्वास्थ्यके जिक्रसे पता चलता है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था, क्योंकि गांधीजीने मार्च और अप्रैल, १९२४ के दौरान जो पत्र लिखे थे उनमें इस बातका उल्लेख मिलता है। उस वर्षेमें ज्येष्ठ सुदी पंचमी, ७ जूनको थी।