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काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्का ध्येय

किसी चीजकी जरूरत हो तो मँगा लेना। स्वास्थ्य बिलकुल ठीक कर लेना। मणिकी तबीयत अच्छी है। राधाकी ज्योंकी-त्यों है। कीकी बहनकी तबीयत भी ठीक ही है।

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च: ] रामदास और प्रभुदास आबू गये हुए हैं। पाँच-छः दिनोंमें वापस आयेंगे।

गंगास्वरूप वसुमतीबहन
लीलावती आरोग्यभवन
देवलाली

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४३) से।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

१०५. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्का ध्येय

एक मित्रने काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्के सम्बन्धमें एक लम्बा पत्र लिखा है। मैं यहाँ उसका एक अंश[१] उद्धृत करता हूँ:

मेरी रायमें का० रा० परिषद्का ध्येय यह होना चाहिए:

(१) ऐसे काम करना जिनसे हरएक रियासतमें राजा और प्रजाका सम्बन्ध जनताके लिए कल्याणकारी बने।

(२) ऐसे उपाय करना जिनसे हरएक राज्य और उसकी प्रजाके बीच के निकटके सम्बन्ध बनें और वे एक-दूसरेको लाभ पहुँचायें।

(३) ऐसे उपाय करना जिनसे समस्त काठियावाड़की प्रजाकी आर्थिक, राजनैतिक और नैतिक उन्नति हो। परिषद्का प्रत्येक कार्य शान्ति और सत्यके ही रास्तेसे किया जाये।

परिषद् राजाओंको अंग्रेजी सरकारके कब्जेसे निकालनेकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकती। यदि उसका ध्येय यह रखा गया तो राजा और प्रजा दोनोंकी हानि होगी।

राजा लोग सरकारके मातहत हैं। वे ऐसी परिषद् करनेकी बातसे सहमत नहीं हो सकते। यही नहीं, उन्हें अपनी आजादीकी हलचल पसन्द भी हो, फिर भी उसकी उन्हें मुखालफत ही करनी होगी। इसलिए जबतक राजा लोग खुद आजादीको अपना ध्येय बनाकर उसके लिए खुले तौरपर आन्दोलन न करें अथवा करनेके योग्य न बनें तबतक मैं इस दिशामें किये गये प्रजाके कामोंको फिजूल और हानिकर ही मानता हूँ।

राजाओंके अन्याय और जुल्मके खिलाफ लोकमत तैयार करना तो परिषद्का काम होना ही चाहिए। यह बात पहले नियममें आ जाती है।

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।
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