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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि यह काम जोर-जबरदस्तीसे कराया जाये तो फलदायी नहीं होगा। आनन्द आयेगा तो रुचि भी बढ़ेगी। जिसके पास ज्यादा समय रहेगा, वह आधे घंटेसे सन्तोष नहीं मानेगा। आधा घंटा तो कमसे-कम समय है, अधिकसे-अधिक नहीं। जितनी स्थायी समितियाँ हैं वे सब कार्यकारिणी समितियाँ हैं। यदि इनके सब सदस्य इस तरह सूत कातें तो उसका अर्थ क्या हुआ? यदि गुजरातके प्रत्येक नगर या कस्बेमें कार्यकारिणी समिति हो तो हमें प्रत्येक नगर या कस्बेमें अच्छे कातनेवाले मिल जायेंगे। परिणामस्वरूप प्रत्येक नगर या कस्बा थोड़े ही अर्सेमें खादीमय हो जायेगा। बुनकर तो जितने चाहिए उतने मिल जायेंगे; परन्तु एक-सार और पक्का मजबूत सूत ही नहीं मिलता। यदि हिन्दुस्तानका प्रत्येक गाँव सूत कातने और कपड़ा बुनने लगे तो कितना बड़ा लाभ हो? एक व्यक्ति द्वारा काते गये सूतसे भले ही न-कुछ पैसा मिले किन्तु समुदाय द्वारा तैयार किये गये सूतसे काफी पैसा मिल जायेगा। बूँद-बूँदसे सरोवर भरता है। यदि प्रत्येक भारतीयकी वार्षिक आयमें एक-एक रुपयेकी वृद्धि हो तो उसका प्रतिव्यक्ति बहुत कम असर होगा, यह समझा जा सकता है; लेकिन उसका कुल मिलाकर जो असर होगा उसमें भारी शक्ति निहित है। एक चींटी क्या कर सकती है? लेकिन चोटियोंका दल क्या नहीं कर सकता? दलकी शक्तिका मूल तो एक चींटी ही है। उसी तरह समुदायकी कताईकी शक्तिका मूल प्रत्येक कातनेवाला है। ऐसी है कातनेवालेकी महिमा।

लेकिन कहा जा सकता है, ,"यदि समुदाय काते तब तो निःसन्देह, प्रत्येकके परिश्रमकी कीमत है; लेकिन यदि केवल एक अथवा दो-चार लोग ही कातें तो उससे क्या लाभ होगा?" ऐसे प्रश्न वे ही लोग कर सकते हैं जो अभी भ्रममें पड़े हुए हैं। व्यक्ति शुरू नहीं करेगा तो समुदाय क्या करेगा? संसारमें आजतक समुदायने कोई सुधार नहीं किया है; उनका आरम्भ तो व्यक्ति ही करता है। सबका आरम्भ एकसे ही होता है। एकके बिना सब-कुछ महत्वहीन है। एकको लम्बी तपश्चर्या करनी पड़ती है, यह स्पष्ट है। जब समुदाय एकके अडिग विश्वासको देखता है तभी उसपर असर होता है और जो सुधार जितना ज्यादा मूल्यवान होगा उसे स्वीकार करनेमें समुदाय उतनी ही देर लगायेगा। स्वराज्य प्राप्ति-जैसा महान् कार्य अल्प तपश्चर्यासे पूरा नहीं किया जा सकता।

इस बातको समझनेवाले लोग निराश न हों। लेकिन समुदायकी ओरसे उत्तर मिलनेमें ज्यों-ज्यों देर होगी त्यों-त्यों उक्त एक व्यक्तिके उत्साहमें---उसके तपमें---वृद्धि होगी। ऐसी दृढ़ श्रद्धाके सामने समुदायकी उदासीनता कबतक टिक सकती है?

इस समय गुजरातसे मेरी माँग है कि वह मुझे चरखेके प्रति ऐसे श्रद्धावान लोग दे। मुझे उम्मीद है कि इस मासके अन्ततक प्रत्येक कार्यकर्त्ता अच्छा चरखा ले लेगा और सूत कातना भी शुरू कर देगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ८-६-१९२४