पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१०८. टिप्पणियाँ

आगाखानी भाई

मेरे हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी लेखपर[१] आलोचनाओंकी झड़ी लग गई है। वह लेख बहुत लोगोंको पसन्द आया है, किन्तु उससे लोगोंके मनमें बहुत क्रोध भी उत्पन्न हुआ है। मैं इन टीकाओंमें से कुछके अंश समय-समय पर 'नवजीवन' में प्रकाशित करता रहूँगा। मैंने अपने लेखमें खोजा भाइयोंकी प्रवृत्तिकी जो चर्चा की है, उससे उन्हें खेद हुआ है और क्रोध भी। उन्होंने मुझे पत्र लिखनेकी अपेक्षा मेरे पास आना अधिक ठीक समझा है। इस बातसे मुझे तो बहुत खुशी हुई। इससे मैं उनके मनको भी समझ सका हूँ। वे यह अनुभव करते हैं कि मुझे उनसे मिले बिना कोई टीका करनी ही नहीं थी। मैंने उन्हें बताया कि मुझे सारे निवेदनमें दोनों पक्षोंको प्रस्तुत करना था। मैंने ऐसा ही किया भी है और जिस बात के बारेमें मुझे स्वयं जानकारी नहीं थी मैंने उसके बारेमें लिखा है कि अमुक प्रवृत्तिके सम्बन्धमें अमुक प्रकारके आरोप किये गये हैं। मैंने कहा है कि उनकी जो पुस्तकें मेरे पास आई हैं, मैं उन्हें अवश्य पढूँगा और उनपर अपनी राय दूँगा। अगर मुझे ऐसा लगा कि गलत सूचना दी गई थी तो मैं यह बात भी स्वीकार करूँगा और क्षमा भी मागूँगा। लेकिन यदि इन लेखोंसे मेरे मनपर जैसा खबर देनेवाले कहते हैं वैसी ही छाप पड़ी और मैं उनकी बातसे सहमत हुआ तो फिर खोजा भाई इससे दुःख नहीं मानेंगे। मैंने उनसे यह भी कहा है कि माननीय आगा खाँ, हिन्दू-धर्ममें अवतार- का जो अर्थ लिया गया है, उस अर्थमें अवतार हैं, यह बात मेरे गले नहीं उतरती। फिर वे 'ओम्' शब्दका जैसा प्रयोग करते हैं और उसके जो रूप देते हैं वह भी मेरी दृष्टिसे हिन्दू धर्मकी मान्यताओंके विरुद्ध हैं।

लेकिन उनका कहना है कि यदि उनका वही मत है तो उन्हें क्या करना चाहिए? मैंने उनसे इसके उत्तरमें कहा है कि उन्हें उसपर दृढ़ रहना चाहिए और मुझे अपने मतानुसार बोलने और लिखनेका अधिकार दिया जाना चाहिए। वे फिर दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि किसीको भी सांसारिक प्रलोभन देकर खोजा नहीं बनाया जाता। मुझे यह बात सुनकर बहुत खुशी हुई है। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया है कि अपने पत्र -प्रेषकोंको मैं यह बात बता दूँगा और अगर वे अपने कथनके पक्षमें प्रमाण नहीं देंगे तो मैं 'नवजीवन' में इस बातको भी प्रकाशित कर दूँगा। अन्तमें उन्होंने यह भी कहा कि खोजा लोगोंकी पूर्णावतारकी कल्पना नई है। 'नवजीवन' के पाठकोंपर ऐसा प्रभाव भी पड़ सकता है, जब कि हकीकत यह है कि उनकी पूर्णावतार और 'ओम्' विषयक मान्यता बहुत पुरानी है और उनके पास इसके प्रमाण हैं।

 
  1. देखिए "हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और उपचार", २९-५-१९२४।