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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वार्थपरता

एक भाई तीसरे दर्जेके बहुत-से मुसाफिरोंकी गन्दी आदतोंके सम्बन्धमें 'नवजीवन' में छपी टीकाको[१] पढ़कर लिखते हैं।[२]

इस भाईने सँकरे गलियारेमें पड़े रहकर असुविधा झेली और बादमें उन्हें अनुग्रहके रूपमें जो जगह दी गई उन्होंने उसे लेनेसे इनकार कर दिया। इसके लिए मैं उनको बधाई देता हूँ। जिन्होंने उन्हें जगह दी वे यदि तनिक भी शिष्टताका व्यवहार करना चाहते थे तो उचित यह था कि जब उक्त भाई डिब्बेमें आये थे, वे उन्हें तभी जगह दे देते। विवेक तो यही कहता है कि यदि तंगी होनेके बावजूद कोई सवारी डिब्बेमें चढ़ आये तो हम उसे जगह दे दें। सच बात तो यह है कि हम लोग अभी कौटुम्बिक भावनामें बहुत आगे नहीं बढ़ सके हैं। सगे-सम्बन्धियोंके लिए तंगी झेलनेका धर्म हमने सीख लिया है। हम जान-पहचानके लोगोंके लिए भी थोड़ी-बहुत तंगी झेल लेते हैं। किन्तु इन दोनोंके लिए कष्ट सहनेमें कोई विशेषता नहीं है। हम एक तीसरे वर्गके लोगोंके लिए भी असुविधा सहते हैं और वह वर्ग है बलवान लोगोंका। यह बात निस्सन्देह अनुचित है। किन्तु बेचारे गरीब मुसाफिरोंसे तो हम उनकी जगह छीन लेनेके लिए भी तैयार हो जाते हैं। यदि हम राष्ट्रीय भावना विकसित करना चाहते हैं तो हमारा धर्म है कि हम गरीबोंके लिए पहले जगह करें। हमारा पड़ौसी विशेषतः वह है जिसे हम जानते न हों; भूखा हो तो हम उसे खिलाकर खायें, प्यासा हो तो उसे पिलाकर खुद पानी पियें और अपनी सुविधाका ध्यान न करके उसको सुविधा दें। यदि हम अपने प्रत्येक देशवासीके लिए यही भावना रखें तो यह भावना राष्ट्रीयताकी भावना है और अगर मनुष्य-मात्रके प्रति रखें तो धर्म-भावना हुई। यदि हम धर्म-भावनाका विकास न भी करें तो हमें कमसे-कम राष्ट्रीयताकी भावनाका विकास तो करना ही चाहिए।

चुंगीकी सीमा

घोलका ताल्लुका परिषद्[३] द्वारा पास किये प्रस्तावोंमें से दो प्रस्ताव विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं:

इनमें से एकसे पता चलता है कि शियाल, बगौदरा आदि गाँवोंके समीप चुंगीका समय बाँध दिया है। इसके अनुसार लोग शामसे सुबह तक चुंगी नाकेके इस तरफ नहीं आ सकते। ऐसा नियम बनानेवाले अधिकारी या तो किसानोंके जीवनसे सर्वथा अनभिज्ञ हैं या उनकी भावना और सुविधाके प्रति लापरवाह हैं। इस देशमें किसान लोग अधिकतर रातको ही यात्रा करते हैं। किसान रातके दो बजेके बाद कभी नहीं सोते। वे सवेरे-सवेरे गाड़ी जोत देते हैं अथवा किसी दूसरे काममें लग जाते हैं। ऐसी आदतवाले लोगोंके लिए ऐसी हदें बाँधकर रोकनेका अर्थ हुआ उन्हें

 
  1. देखिए "टिप्पणियाँ", २५-५-१९२४।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  3. पद परिषद् घोलका, उत्तर गुजरातमें मई, १९२४ को हुई थी।