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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने पूछा: आपने पहले तो "शान्तिपूर्ण और वैध" का "अहिंसात्मक और सत्यपूर्ण" ऐसा सख्त अर्थ सूचित नहीं किया था जैसा कि आपने अ० भा० कां० क० की दिल्लीमें हुई बैठकके बाद दिया?

हो सकता है कि मैंने कलकत्ता कांग्रेसमें अपने अर्थको स्पष्ट न किया हो। क्योंकि मैं समझता था कि इनका इस अर्थके सिवा कोई दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता और प्रत्येक व्यक्तिने इनका यही अर्थ समझा है।

तब फिर आप अपने अर्थको दूसरोंपर क्यों लाद रहे हैं? उन्होंने कहा:

मैं 'शान्तिपूर्ण और वैध' शब्दोंका अर्थ अहिंसात्मक और सत्यपूर्ण ही लगाता हूँ; किन्तु मैं उसे दूसरोंपर नहीं लादना चाहता। यदि मैं ऐसा करूँ तो वह मेरे धर्मसे असंगत बैठेगा। मुझे अपना अर्थ बादमें स्पष्ट अवश्य करना पड़ा, क्योंकि मैंने सोचा कि लोगोंने इसका अर्थ गलत लगाया है।

आपने अपने हालके वक्तव्यमें अधिक जोर प्राप्त-परिणामोंपर नहीं, मनोवृत्तिपर दिया है; किन्तु कलकत्ता कांग्रेसके अवसरपर आपने कहा था कि असहयोग आन्दोलन निश्चित उद्देश्योंकी पूतिके लिए अर्थात् खिलाफत और पंजाबके प्रति किये गये अन्यायके प्रतिकारके लिए शुरू किया गया है। आपने उस समय मनोवृत्तिपर इतना जोर नहीं दिया था। क्या इसमें कोई असंगति नहीं है?

मैं मनोवृत्तिको बहुत अधिक महत्व नहीं देता। मैं उसे केवल वहीं तक महत्व देता हूँ जहाँतक उसका प्रभाव विभिन्न समस्याओंको हल करनेपर पड़ता है।

आप जानते हैं कि कांग्रेस अपनी नीति निश्चित करती है और उस नीतिपर अमल कराने तथा उसके पर्यवेक्षण करनेके लिए अपनी कार्यकारी समितियाँ बनाती है। यदि कांग्रेस अपनेको दिये गये विवेकाधिकारके अनुसार अपनी नीतिपर अमल करनेके लिए स्वराज्यवादियोंको चुन ले तो क्या आप उस समय भी सोचेंगे कि स्वराज्यवादियोंकी स्थिति कांग्रेसकी नीतिसे मेल नहीं खाती; खासकर उस हालतमें जब किसी दूसरेकी अपेक्षा कांग्रेस ज्यादा अच्छी तरह इस बातको जानती है कि उनमें मतभेद है?

यह भी मेरे द्वारा ग्रहण की गई स्थितिके सम्बन्धमें फैली हुई गलतफहमी है। मैं जानता हूँ कि कांग्रेस-मतदाता जिसे चुनना चाहें चुन सकते हैं। इसके लिए वे स्वतन्त्र हैं। किन्तु मैं कांग्रेसका एक विनम्र कार्यकर्त्ता हूँ और साथ ही एक मतदाता भी हूँ। इसलिए मैं अपने स्वतन्त्र विचारके अधिकारका उपयोग कर रहा हूँ और मतदाताओंका पथ-प्रदर्शन इस तरह करनेके लिए प्रयत्नशील हूँ कि वे अपने कार्यक्रमके अनुकूल ऐसे ही प्रतिनिधियोंको चुनें, जिन्होंने उसपर पूर्ण रूपसे अमल करनेकी शपथ ली हो। मैं इसी प्रकारकी अपील मतदाताओंके वर्तमान प्रतिनिधियोंसे भी करता हूँ कि जहाँ उन्हें असहयोगके प्रस्तावका पालन करना है, वहाँ उनका यह कर्त्तव्य भी है कि वे या तो उस कार्यक्रमपर पूर्ण रूपसे अमल करें या अपने पदोंसे त्यागपत्र दे दें और निर्वाचकोंसे उन्हीं लोगोंको चुननेके लिए कहें जो उस कार्यक्रमपर विश्वास करते हैं।