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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जितनी सेवा कर चुके हैं, उससे अधिक करें। इसलिए मैंने एक आलोचकके नाते नहीं बल्कि एक मित्र और शुभेच्छके नाते उनका ध्यान उनकी संकीर्णताओंकी ओर आकर्षित किया है। फिर भी मेरे कथनसे सारे भारतके आर्यसमाजी क्षेत्रोंमें क्षोभ फैल गया है। हम सभी इन दिनों बड़े भावुक हो गये हैं और इसीलिए हम आलोचनासे अधीर हो उठते हैं तथा उसे सहन नहीं कर सकते, यह बात मेरी समझमें आती है। हम अपने विरुद्ध की गई किसी भी आलोचनाको सहन नहीं करते, फिर चाहे वह बहुत ही मैत्रीपूर्ण ढंगसे भी क्यों न की गई हो। किन्तु मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि यदि मैं स्वयं ठंडा रहूँ तो यह आंधी अपने-आप शान्त हो जायेगी, और चूँकि अभी फिलहाल तो मेरा मानसिक सन्तुलन बिगड़ता नहीं दिखता इसलिए अपने विरुद्ध की गई इस तमाम रोषपूर्ण नुक्ताचीनीका मुझपर कोई असर नहीं पड़ा है।

देरी हो रही थी, इसलिए मैंने महात्माजीसे कहा कि एक प्रश्न और पूछकर मैं अपना काम समाप्त मान लूँगा। मैंने प्रश्न किय: "आपके खद्दरके कार्यक्रमका उद्देश्य भारतको आर्थिक मुक्ति दिलाना है अथवा आप इसके जरिये लोगोंके मनोभावोंको राष्ट्रीयताकी ओर मोड़ना चाहते हैं? यदि पहली बात है तो फिर आप लोगोंमें राष्ट्रीयताकी भावना जगानेका सुगठित प्रयत्न किये बिना स्वराज्य ले लेनेकी आशा कैसे करते हैं? यदि दूसरी बात ठीक है तो क्या खद्दरका वर्तमान कार्यक्रम लोगोंमें उस भावनाको जागृत करनेके लिए पर्याप्त होगा?

यदि खद्दरके कार्यक्रमको सफलता मिल गई तो निःसन्देह उससे भारतको आर्थिक मुक्ति प्राप्त हो जायेगी। मेरा विचार है कि जबतक जनता अपनी आर्थिक मुक्ति प्राप्त नहीं कर लेती तबतक सुयोजित प्रयत्न करना सम्भव नहीं है। इसके अतिरिक्त सुयोजित प्रयत्न किये बिना खद्दरके कार्यक्रमको कार्यरूपमें परिणत करना असम्भव है। फिर खद्दरके सफलीभूत कार्यक्रमका यही अर्थ तो है कि खुद अंग्रेज राष्ट्रवादी बन जायें या कमसे-कम ऐसे बन जायें कि वे भारतीय आन्दोलनको निष्पक्ष दर्शकके रूपमें देख सकें। अब वे भारतको उसका शोषण करनेके उद्देश्यसे अपना गुलाम बनाये रखनेमें सफल नहीं होंगे।

...महात्माजी, क्या आपको आशा है कि अ० भा० कां० क० का जो अधिवेशन निकट भविष्यमें यहाँ होने जा रहा है उसमें आपके इन दोनों वक्तव्योंमें व्यक्त किये गये विचारों और पदाधिकारियोंके लिए रखी गई कड़ी कसौटियोंका अनुमोदन होगा?

यह कहना मेरे लिए कठिन है कि कांग्रेस कमेटीके सदस्य उसके आगामी अधिवेशनमें क्या करेंगे। किन्तु यदि मेरी सुझाई गई सभी कठोर कसौटियोंको अत्यधिक बहुमतसे अस्वीकार कर दिया जायेगा तो मुझे इससे जरा भी आश्चर्य नहीं होगा। मैं चाहता हूँ कि मुझे या तो ऐसे लोगोंका स्पष्ट बहुमत मिले जो हृदयसे इस कार्यक्रममें विश्वास करते हों और जो हर हालतमें उसे कार्यरूप देनेके लिए कृतसंकल्प हैं, अथवा मैं बिलकुल ही अल्पमतमें रह जाऊँगा। इस समय हमारे दिमागोंमें जो जबरदस्त