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भाषण: गुजरात विद्यापीठमें

अनिश्चितता भरी हुई है, वह मेरे लिए असह्य है। इसने हमारी वास्तविक प्रगतिको नितान्त असम्भव बना दिया है।

किन्तु यदि जनताके प्रतिनिधियोंके विचार आपके कार्यक्रमके पक्ष और विपक्षमें लगभग समान हों तो फिर आप क्या करना चाहेंगे?

एक तो दोनों तरफ मत लगभग बराबर हों इसे मैं सम्भव नहीं समझता। असलमें तो कोई एक स्पष्ट समझौता हो जायेगा और मतदानकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। किन्तु यदि मत लेने ही पड़े और दोनों पक्षोंके मत लगभग बराबर रहे तो मेरा खयाल है कि ईश्वर हमें कुछ-न-कुछ ऐसी शक्ति देगा कि हम साफ-साफ दो दलोंमें विभक्त हो सकेंगे...।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ९-६-१९२४

१११. भाषण: गुजरात विद्यापीठमें[१]

१० जून, १९२४

भाई कृपलानी, विद्यार्थियो, भाइयो और बहनो,

आज सुबह मेरे सम्मुख तीन पत्र पढ़नेके लिए प्रस्तुत किये गये थे।[२] इनमें से एकमें कहा गया है कि आपसे हो सके तो आप विद्यापीठको दियासलाई लगा दें। विद्यापीठने अबतक कुछ भी अच्छा काम नहीं किया है। लेखक विद्यापीठमें शिक्षा पाये हुए व्यक्ति हैं। दूसरे पत्रमें कहा गया है कि विद्यार्थी विलासप्रिय हैं और अनेक प्रकारके रसास्वादन करते हैं। मैंने अपने लड़केको यह समझकर विद्यापीठमें भेजा था कि वहाँ विद्यार्थी सादगीसे रहते होंगे और उनका चरित्रबल बढ़ता होगा। अब मुझे क्या करना चाहिए? तीसरा पत्र मद्राससे आया है। लेखकने इसमें लिखा है कि मेरा आजका भाषण ऐसा होना चाहिए जिससे सारे हिन्दुस्तानको मार्ग-दर्शन मिले।

ऐसी परिस्थितिमें मैं क्या कहूँ? मैं इन तीनोंमें से कौन-सा कार्य करूँ? मैं तो इनमें से एक भी काम नहीं करना चाहता। जिस विद्यापीठको स्थापित करनेमें मेरा कुछ हिस्सा है उसे मैं क्यों जला डालूँ? एक अंग्रेज चित्रकारकी कथा है। उसने विनोदके खातिर अपना एक चित्र बाजारमें लटका दिया और उसके नीचे लिख दिया

 
  1. गांधीजीने यह भाषण अहमदाबाद स्थित गुजरात विद्यापीठके सत्रारम्भके अवसरपर कुलपतिकी हैसियतसे दिया था।
  2. १० जून, १९२४ के हिन्दूमें प्रकाशित भाषणके विवरणमें कहा गया है: "आज सुबहसे ही आप छात्रोंके सम्बन्धमें विचार कर रहा था; किन्तु मैं अपना विचार केवल आपपर ही केन्द्रित नहीं कर सका। मैं यह भी सोच रहा था कि हिन्दू-मुस्लिम समस्याको हल करनेका सर्वोत्तम उपाय क्या है। इसी बीच देवदासने मुझे ये तीन पत्र लाकर दिये और कहा कि मुझे इनको छात्रोंके सम्मुख भाषण देनेसे पहले अवश्य पढ़ लेना चाहिए।