पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२५
भाषण: गुजरात विद्यापीठमें

मुसलमान 'कुरान' को भूल गये हैं और हिन्दू 'गीता' को। वे उसके बजाय निकम्मा अर्थशास्त्र लिये बैठे हैं। वे भूखों मरनेसे बचने के लिए दुनिया-भरका संघर्ष कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि जिन लोगोंने ऐसा संघर्ष नहीं किया वे भी भूखों नहीं मरे हैं। और ऐसा संघर्ष करें भी किसलिए? विद्यालयमें क्या सीखना है? अपने ध्येयके विषयमें दृढ़ता-मात्र। इंग्लैंडकी पाठशालाओंमें भी विद्यार्थियोंको आजीविकाकी चिन्ता नहीं करने दी जाती। वहाँके शिक्षक कहते हैं--"पढ़कर पुरुषार्थ करना और अपनी रोटी आप पैदा करना।" इसीसे आप देखते हैं कि लोग इस छोटेसे टापूमें से निकलकर कहाँ-कहाँ जाते हैं। मेरे अनेक अंग्रेज मित्र आज दुनियामें घूम रहे हैं। इसपर कोई कहेगा---"परन्तु उनपर ब्रिटिश झंडेकी छाया जो है?" वे अपना पेट ब्रिटिश झंडेकी छायामें नहीं भरते। हाँ, उससे उनकी रक्षा जरूर होती है। अगर कोई उनको मारता है तो ब्रिटिश झण्डा फहर उठता है और तोपें चलने लगती हैं। हमें इस रक्षाकी जरूरत नहीं है। परन्तु आज प्रस्तुत विषय यह नहीं है। प्रस्तुत विषय तो यह है कि आप लोग इस बातका विचार ही न करें कि भविष्य में आपकी आजीविकाका क्या होगा। आपके हृदयोंमें यह बात जम जानी चाहिए कि आप भंगीके कामसे पुरुषार्थ करके रोजी कमा लेंगे। बुनकरका काम करके रोजी कमा लेंगे। परन्तु ऐसा काम कभी नहीं करेंगे जिससे आपका सिर नीचा हो जाये। आप किसीके दरवाजेपर भीख माँगने नहीं जायेंगे। फिर माँ-बाप या भाई-बहनकी चिन्ता किसलिए? अन्धेरमें रोशनी करनेके लिए एक चिराग काफी होता है। इसी तरह अगर आप अपने कुटुम्बमें एक सपूत निकले तो भी काफी है। यदि आपके सिरपर माँ-बाप और भाई-बहनोंके पोषणका भार आ पड़े तो आप अपनी बहनसे कहें कि मैं तुम्हें खिलाकर ही खाऊँगा। परन्तु तुम्हें रबड़ी-मलाई नहीं, रोटी मिलेगी। बहन भी आपको मेहनत करते हुए देखकर बैठी नहीं रहेगी, बल्कि स्वयं भी जुट जायेगी और आजीविका कमाने में आपकी मदद करेगी। इस तरह अगर आपमें हिम्मत होगी तो सब बातें ठीक हो जायेंगी।

अब रही बीचवालों की बात। आप पूछेंगे, फिर हमें अब क्या करना चाहिए? हमें क्या आशा करनी चाहिए? आपको कोई आशा नहीं करनी चाहिए। मैं आपसे कहता हूँ कि अगर आपका विश्वास अध्यापकोंपर से उठ जाये और आपको यह मालूम हो कि अध्यापक यहाँ धन कमाने आये हैं, ढोंग करने आये हैं और बड़े बनने आये हैं तो आप उन्हें छोड़कर चले जायें। एक मनुष्यने कहा, आपको धनका लोभ चाहे न हो, परन्तु आप आडम्बर तो करते हैं; क्योंकि आपको महात्मा जो बनना है? बात सच है। अतः अगर आपको यह मालूम हो कि अध्यापक बड़े बनना चाहते है तो आप उनको छोड़ दें। छोड़ें ही नहीं, बल्कि बाहर उनकी खूब निन्दा करें। अध्यापकों और विद्यार्थियोंमें कोई करार नहीं है। अगर अध्यापक चरित्रवान हों तो भी आप अपना सारा भार उनपर न डाल दें । विद्याका दान कौन दे सकता है ? कोई नहीं। अध्यापकों का काम है आपके भीतरके गुणोंको परखकर बाहर लाना। इनको उज्ज्वल और विकसित तो आप ही कर सकते हैं। "शिक्षा" शब्दका भी

२४-१५