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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अर्थ यही है---जो भीतर हो उसे बाहर लाना। अतः पढ़ाई क्या होगी, इस विषय में आपको निश्चिन्त रहना चाहिए। आप अध्यापकोंपर विश्वास रखकर जो कुछ वे सिखायें उसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण करें।[१]

अपने सदाचारकी रक्षा करना खुद आपके हाथोंमें है। आपके सदाचारकी रक्षा अध्यापकोंके द्वारा नहीं हो सकती। आपको यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए। आप यहाँ रास-रंग और आमोद-प्रमोदके लिए नहीं आये हैं। आपका आमोद-प्रमोद है आपका अध्ययन, आपका बाहुबल और पुरुषार्थ। आप अपने हाथ-पैर हिलाना सीखें। विद्यार्थी पहले अपंग बन जाते हैं और फिर कहते हैं कि अब अखाड़ेमें जाकर हट्टे-कट्टे बनेंगे। आप अखाड़ेमें जानेसे हट्टे-कट्टे नहीं बनेंगे। आप पहले हृदय-बल प्राप्त करें। तब आपको शरीर-बल प्राप्त हो सकेगा।

मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ---ईश्वरसे तो प्रार्थना क्या करूँ, मैं उसके सम्मुख तो रहता ही हूँ, अतः मेरी प्रार्थना आपसे ही है। आप खुद अपनी तथा अध्यापकोंकी कीर्ति बढ़ायें। हमारा यह विद्यापीठ सारे देशके लिए एक नमूना है। गुजरातने शिक्षा-विषयक असहयोगको सफल कर दिखाया है। यह ठीक है या नहीं; अथवा ठीक है तो किस हदतक है, इसका निर्णय तो भविष्यमें होगा।

मैं अध्यापकोंसे भी विनय नहीं करना चाहता, क्योंकि मैं भी उन्हींमें से हूँ। आज तो मैं यही विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ कि शिक्षा-विषयक यह असहयोग सफल होता है या नहीं, यह बात आपपर ही निर्भर है। मैं चाहता हूँ कि आज आप यही विचार लेकर घर जायें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४

११२. पत्र: वसुमती पण्डितको

ज्येष्ठ सुदी १० [११ जून, १९२४][२]

चि० वसुमती,

तुम्हारा दूसरा पत्र मिला। जितने पत्र तुम लिखोगी, मुझसे भी केवल उतने ही पानेकी अपेक्षा करना। अभीतक तो ऐसा ही हो पाया है। मुझे तुम्हारा पत्र जिस दिन मिला था, उसी दिन उत्तर दे दिया था। मिल गया होगा। रामदास और अन्य लोग आबूसे लौट आये हैं। मालूम होता है, वहाँ उन्हें बहुत लाभ हुआ।

 
  1. यहाँ हिन्दूमें छपे विवरणमें यह भी मिलता है; "आप उनमें श्रद्धा रखें, अपने कर्त्तव्यका पालन करें और अपने बीच स्वतन्त्रता और राष्ट्रीयताकी भावनाको विकसित करें। आप इस प्रकार इस विद्यापीठकी, जिसमें आप शिक्षा पाते हैं, कीर्ति बढ़ाये।"
  2. डाकखानेकी मुहरके अनुसार ११ जूनको जेष्ठ सुदी नवमी पड़ती थी, अतः जेष्ठ सुदी १० भूलसे दी गई जान पड़ती है।