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सन्देश: सौराष्ट्र राजपूत परिषद्को

तुम वहाँ जा सकती तो कितना अच्छा होता। अब देवलालीमें ही बनी रहो और अपनी तबीयत पूरी तरह सुधारो। मेरा स्वास्थ्य ठीक है। प्रभुदास अभी आबूसे नहीं लौटा। देवदास और बा आज भावनगर गये हैं।[१]

बापूके आशीर्वाद

वसुमती बहन
लीलावती आरोग्यभवन
देवलाली

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४४) से। सौजन्य: वसुमती पण्डित

११३. सन्देश: सौराष्ट्र राजपूत परिषद्को

वरतेज
११ जून, १९२४

राजपूतोंकी पहली परिषद् होने जा रही है और मैं इस अवसरपर केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप परिषद्का प्रारम्भ धर्मके आधारभूत सत्योंका पालन करते हुए करें। आप वहाँ अपने अधिकारोंके सम्बन्धमें अनेक प्रस्ताव पास करेंगे; किन्तु मेरा निवेदन है कि आप अपने कर्त्तव्यको न भूलें। जो लोग अपने कर्त्तव्यका पालन निष्ठाके साथ करते हैं उन्हें ईश्वर सदैव अधिकार प्रदान करता है। आप गरीबोंके संरक्षक बननेका प्रयत्न करें; तब आप यह समझ जायेंगे कि चरखा उनका जीवन ही है। आप स्वयं चरखा चलाकर उनमें चरखेका प्रचार करें। मुझे आशा है, आप आज केवल हाथसे कती और बुनी खादी पहननेका व्रत लेंगे। इससे आपको गरीबोंका आशीर्वाद मिलेगा। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-६-१९२४
 
  1. देखिए "पत्र: देवचन्द पारेखको", ८-६-१९२४।