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११४. जेलके अनुभव---८

जेलोंकी अर्थ-व्यवस्था

जिसे जेलोंका कुछ भी अनुभव है, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि जेल सारे विभागोंमें सबसे ज्यादा दरिद्र विभाग है। जेलोंमें प्रत्येक वस्तु अत्यन्त मामूली किस्मकी और भद्दी होती है। वहाँ मानवीय श्रमके खर्च में अपव्यय तथा पैसे और वस्तुओंके मामलेमें कंजूसी बरती जाती है। अस्पतालोंमें इससे बिलकुल उलटा होता है तथापि दोनों ही ऐसी संस्थाएँ हैं जो मानवीय रोगोंका उपचार करनेके उद्देश्यसे बनी हैं--जेल मानसिक रोगोंके लिए और अस्पताल शारीरिक रोगोंके लिए। मानसिक- रोग अपराध हैं और इसलिए दण्डनीय माने जाते हैं तथा शारीरिक रोग प्रकृतिके अनपेक्षित प्रकोप हैं और वे इसलिए दण्डनीय नहीं माने जाते बल्कि शरीर-रोगीके साथ तो स्नेहका व्यवहार किया जाता है। वास्तवमें, इस प्रकारका भेद करनेका कोई कारण नहीं है। मानसिक और शारीरिक, दोनों ही प्रकारके रोगोंका उद्भव एक ही कारणसे होता है। यदि मैं चोरी करता हूँ तो वह नियम भंग करता हूँ, जिससे कोई स्वस्थ समाज शासित होता है; और यदि मैं पेटके दर्दसे पीड़ित हूँ तो मैं उन्हीं नियमोंका भंग करता हूँ, जिनसे कोई स्वस्थ समाज शासित होता है। शारीरिक रोगोंके प्रति नरमीका व्यवहार करनेका एक कारण यह भी है कि तथाकथित उच्चवर्गीय लोग निम्नवर्ग के लोगों की अपेक्षा, शारीरिक स्वास्थ्यके नियमोंका कदाचित् अधिक बहुतायतसे भंग करते हैं। उच्च वर्गके लोगोंको भोंडी चोरियाँ करनेकी कोई जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए भी कि स्पष्ट चोरियाँ होते रहनेसे उनकी जीवनचर्यामें व्यवधान उत्पन्न हो सकता है और वे यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी ठगविद्या---जो समाजमें चल जाती है---भोंडी चोरियोंकी अपेक्षा समाजके लिए कहीं अधिक हानिकर होती है। यह भी एक विचित्र बात है कि गलत उपचारके कारण ही दोनों संस्थाएँ पनप रही हैं। अस्पताल इसलिए पनप रहे हैं कि रोगियोंको प्रश्रय दिया जाता है, तथा उनका मन रखा जाता है और जेल इसलिए पनप रही हैं कि कैदियों को सुधारसे परे समझकर दण्ड दिया जाता है। यदि मानसिक या शारीरिक, प्रत्येक रोगको एक स्खलन माना जाता, फिर भी यदि प्रत्येक रोगी या कैदीके साथ दयालुता और सहानुभूतिके साथ बर्ताव किया जाता---न कि कठोरता अथवा अनुचित अनुग्रहका---तो अस्पताल और जेल, दोनोंकी संख्यामें कमी होते जानेकी प्रवृत्ति दिखाई देने लगती। स्वस्थ समाजके लिए न जेलकी जरूरत है, न अस्पतालोंकी। होना तो यह चाहिए कि प्रत्येक रोगी और प्रत्येक कैदी अस्पताल या जेलसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यका व्रती प्रचारक बनकर बाहर निकले।

किन्तु अब मुझे यह तुलनात्मक विवेचन समाप्त कर देना चाहिए। पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जेलोंमें कंजूसी मितव्ययिताके नामपर की जाती है। यद्यपि सारा काम---उदाहरणके लिए, पानी खींचना, आटा पीसना, रास्ते और पाखाने साफ