पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२९
जेलके अनुभव--८

करना, रसोई बनाना---कैदियोंसे ही लिया जाता है, फिर भी कैदी आत्मनिर्भर होना तो दूर, अपने भोजन का पैसा भी नहीं निकाल पाते और अपने सारे परिश्रम के बावजूद, कैदियोंको रुचिकर भोजन भी नहीं मिलता और उसके बनानेका ढंग भी उपयुक्त नहीं होता। इसका कारण केवल इतना ही है कि उन कैदियोंकी जो रसोई बनाने इत्यादिका काम करते हैं, सामान्यतः अपने काममें दिलचस्पी नहीं होती। उन्हें यह काम ऐसे लोगोंकी देखरेखमें करना पड़ता है जो उनके प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं रखते। यह समझना बहुत आसान है कि कैदी यदि परोपकारी जीव होते और इसलिए उन्हें अन्य लोगों के हितकी चिन्ता होती तो वे जेलमें जाते ही क्यों! अतः यदि कोई अधिक युक्तिसंगत और अधिक नैतिक प्रशासन पद्धति अपनाई गई होती तो जेल आजकी तरह घोर अपराधियोंकी खर्चीली बस्तियाँ होनेके बजाय, बड़ी सरलताके साथ स्वावलम्बी सुधार संस्थाएँ बन जाती। यदि मेरा वश चले तो मैं पानी खींचने, आटा पीसने आदिमें होनेवाले श्रमके भयानक अपव्ययको बचा लेता। यदि बागडोर मेरे हाथमें होती तो मैं आटा बाहरसे खरीदता, पानी मशीनसे खिंचवाता और कैदियों को सभी प्रकारके फुटकर कामोंके बजाय खेती, हाथकी कताई और हाथकी बुनाईके काममें लगाता। छोटी जेलोंमें तो कताई और बुनाईका काम ही रखा जाये। आज भी अधिकांश केन्द्रीय जेलोंमें बुनाई होती है। बस, इसमें पिंजाई और हाथकी कताईको ही जोड़नेकी जरूरत है। आवश्यकतानुसार सारी कपास जेलोंमें ही उत्पन्न की जा सकती है। यह पद्धति हमारे राष्ट्रीय कुटीर उद्योगको लोकप्रिय बनायेगी, और जेलोंको आत्मनिर्भर। इस प्रकार सभी कैदियोंके श्रमका उपयोग लाभदायक कामोंके लिए [ सपारिश्रमिक ] होते हुए भी प्रतिस्पर्द्धात्मक कामोंके लिए नहीं होगा--जैसा कि अभी कुछ हदतक है। यरवदा जेलके अन्तर्गत एक छापाखाना है। इस छापेखानेमें काम करनेवाले अधिकतर कैदी ही हैं। मैं इसे सामान्य छापाखानोंके साथ अन्यायपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा मानता हूँ। यदि जेल उद्योगोंमें प्रतिस्पर्द्धा करें तो उनका सारा खर्च निकालकर बचत हुई दिखाई जा सकती है। किन्तु मेरा उद्देश्य यह सिद्ध करना है कि प्रतिस्पर्द्धामें पड़े बिना भी जेलोंको आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है; साथ ही उसमें आनेवाले कैदियोंको कोई ऐसा घरेलू उद्योग सिखाया जा सकता है, जो उनकी रिहाईके बाद उन्हें स्वतन्त्र व्यवसाय दे सके और इस प्रकार उन्हें सम्माननीय नागरिको-जैसा जीवन-यापन करनेकी दिशामें पूरा-पूरा प्रोत्साहन दे।

साथ ही मैं सामान्य सुरक्षाका खयाल रखते हुए कैदियोंके लिए यथासम्भव घर-जैसा वातावरण प्रस्तुत करूँगा। इस प्रकार मैं उन्हें अपने सम्बन्धियोंसे मिलने, पुस्तकें प्राप्त करने, यहाँतक कि शिक्षा पानेकी भी सब सुविधाएँ दूँगा। मैं अविश्वासके स्थान पर समुचित विश्वासकी स्थापना करूँगा। वे जो भी काम करेंगे मैं उन्हें उसका श्रेय दूँगा और पका हुआ भोजन या उसकी सामग्री उन्हें ही खरीदने दूँगा।

मैं अधिकांश सजाओंकी अवधि अनिश्चित रखूँगा, जिससे कि उन्हें समाजकी सुरक्षा और अपने खुदके सुधारके लिए जितना आवश्यक है उससे एक क्षण भी अधिक जेलमें न रोकना पड़े।