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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तमें, मैंने अपने निवेदनमें यह भी नहीं कहा कि समाजी या मुसलमान औरतोंको उड़ाते ही हैं। मैंने तो यह लिखा है कि "मैं सुनता हूँ" कि वे ऐसा करते हैं। मैंने जो बात कानपर आई उसे कहकर दोनों पक्षों को यह मौका दे दिया कि वे इस इल्जामको झूठा साबित करें। जो कुछ कहा जा रहा था, वातावरणको निर्मल करने की दृष्टिसे। क्या उस सबको प्रकाशित कर देना ज्यादा अच्छा नहीं हुआ?

आर्यसमाजी मित्रोंसे मैं कहूँगा कि उनका यह विरोध उनमें सहिष्णुताकी कमी जाहिर करता है। सार्वजनिक कार्यकर्ताओं और सार्वजनिक संस्थाओंके इतने तुनक मिजाज होनेसे कैसे काम चल सकता है? उन्हें तो कठोरसे-कठोर टीका भी हँसकर सहन करनी चाहिए।

और अब मुझे उनसे एक प्रार्थना करनी है---आपमें से लगभग बहुतेरे भाई मेरी टीकापर अपना विरोध प्रकाशित कर चुके। इसका मुझे रंज नहीं है। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपके दुःखसे मैं दुखी हुआ हूँ। मैंने वह टीका दुःखित हृदयसे ही लिखी थी और अब यह देखकर कि उससे बहुतोंके दिलको चोट पहुँची है, मैं दुःखित हुआ हूँ। मैं आपका दुश्मन नहीं हूँ, बल्कि मैं तो आपका मित्र होनेका दावा करता हूँ। समय आनेपर इसका सबूत आपको मिलेगा। आप किसी व्यक्ति या धर्मसे झगड़ना नहीं चाहते। आप लोगोंने लगभग अपने सभी पत्रोंमें यही कहा है। मैंने आर्यसमाजकी, उसके संस्थापककी और स्वामी श्रद्धानन्दजीकी जो प्रशंसा की है उसे हृदयंगम कीजिए। आर्य समाजने हिन्दू समाजकी बुराइयाँ दूर करनेका जो काम किया है उससे मैं अनभिज्ञ नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि आर्यसमाजने हिन्दू धर्मको कलंकित करनेवाली कितनी ही कुप्रथाओंको मिटानेकी कोशिश की है। परन्तु पिछली कमाईपर कोई कबतक जीवित रह सकता है? आप शब्दोंका अतिक्रमण करके धर्मकी भावनाको समझें और उसका प्रचार करें। आप शौकसे इनकार कीजिए, पर मैं फिर कहता हूँ कि आपके शुद्धि-आन्दोलनमें मुझे पादरियोंके धर्म प्रचारकी पद्धतिकी बू आती है। मैं चाहता हूँ कि आप इससे ऊँचे उठें। अगर आप अपने ही क्षेत्रको सुधारने का आग्रह करें तो आपका पूरा समय और पूरी शक्ति उसीमें लग सकती है। मेरी तरह अगर आप भी मानते हों कि आर्यसमाज हिन्दू धर्मका एक अंग है तो हिन्दूको हिन्दू बनानेका प्रयत्न कीजिए। अगर आप आर्य समाजको हिन्दू धर्मसे जुदा मानते हों तो मेरा खयाल है कि फिर आप उनकी राय नहीं बदल पायेंगे। पहले अपनी जगह जाननेकी कोशिश कीजिए। मैंने आपपर टीका इसलिए की है कि मैं वर्तमान राष्ट्रीय और धार्मिक आन्दोलनमें आपका सहयोग चाहता हूँ। अगर आर्यसमाज उस संकुचितताको छोड़कर, जो मुझे दिखाई दी है, व्यापक दृष्टि धारण कर ले तो उसका भविष्य उज्ज्वल है। अगर आप यह कहते हों कि आप पूरे विकसित हो चुके हैं तो मुझे जरूर रंज होगा और तब चूँकि मुझे आपमें उदारता नहीं दिखाई देती, आपका मुझपर गुस्सा करना मुनासिब नहीं है। बल्कि मुनासिब यह है कि कि आप अपनेको उदाराशय बनाकर, मेरे अज्ञानको नजरअन्दाज करें, और धीरजके साथ उसे दूर करनेका प्रयत्न करें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-६-१९२४