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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं मानता हूँ कि पत्र लेखककी आपत्तिमें काफी जोर है। मुझे अन्देशा है कि यह बहुत मुमकिन है कि अपरिवर्तनवादियोंने मेरे प्रति वफादारी निभानेकी भावनासे हो प्रेरित होकर मूल कार्यक्रमके पक्षमें अपनी राय दी हो। अगर यही बात हो तो अब उन्हें इस अटपटी स्थितिसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह अच्छा हुआ कि पत्र-लेखकके पहले ही मैंने यह बात कह दी थी कि अगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके वर्तमान सदस्य कांग्रेसके कार्यक्रममें विश्वास न रखते हों तो वे मेरा साथ छोड़ देनेमें तनिक भी संकोच न करें। राष्ट्र-कार्य ही सर्वोपरि है। राष्ट्र कार्यके सामने हमें अपने प्रियसे-प्रिय व्यक्तियोंको उठाकर एक तरफ रख देना चाहिए। राष्ट्र-कार्यके प्रति हमारी वफादारीके सामने दूसरे तमाम विचार गौण होने चाहिए। मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ कि सभी ईमानदारीसे और कार्यक्षमता बढ़ानेकी दृष्टिसे काम लें। पूरे कार्यक्रमपर जिन लोगों का विश्वास न हो, उन्हें चाहिए कि वे उन लोगोंके लिए अपनी जगहें खाली कर दें जिनका उसपर विश्वास है। यदि सब लोग या बहु-संख्यक लोगोंका उसमें विश्वास न हो तो उन्हें नया कार्यक्रम बनाना चाहिए और उसे पूर्ण करना चाहिए। मैं तो कांग्रेसके प्रस्तावोंके पीछे भी आँख मूँदकर चलनेके पक्षमें नहीं हूँ। कांग्रेसका लक्ष्य है-- स्वराज्य। अगर पिछले छः महीनोंके अनुभवने हमें इससे अच्छा उपाय सुझा दिया हो तो हमें सहर्ष उसका अवलम्बन करना चाहिए। कांग्रेसके जिन प्रस्तावों में कभी हमारा विश्वास ही नहीं रहा, जिनके प्रति अब हमारा विश्वास हिल चुका है, उनके अनुसरणका ढोंग करने के बजाय यदि हम अपने-अपने विश्वासोंके अनुसार ही चलें तो यह कांग्रेस के प्रति अधिक ईमानदारीकी बात होगी। अगर इन छः महीनों के अनुभवने हमारा झुकाव स्वराज्यवादियों के मतकी तरफ कर दिया हो तो हमें स्पष्टरूपसे, साहसके साथ यह बात कह देनी चाहिए और निस्संकोच स्वराज्यवादियोंके साथ हो जाना चाहिए। मैं विरोध कर रहा हूँ केवल ढोंग और ढकोसलेका। उनसे हमारा काम चौपट हो जायेगा। अगर हम वकालत जारी रखनेवाले वकीलोंके बिना कांग्रेसके संगठनोंको न चला सकते हों तो हम बखुशी अदालतोंका बहिष्कार समाप्त कर दें। और अगर चरखेमें हमारा विश्वास न हो तो उसकी बात भी छोड़िए। चरखेके प्रति जबानी वफादारीसे तीस करोड़ लोगोंके लिए सूत मुहैया नहीं किया जा सकता, जिसकी हमें जरूरत है। दूसरे शब्दोंमें कहें तो हमें वही करना चाहिए जो सभी सफल संस्थाओंने आजतक किया है अर्थात् उन संस्थाओं का काम ऐसे लोगोंके सुपुर्द कर देना चाहिए जिनका उन कामोंकी उपयोगितामें पूरा-पूरा विश्वास हो। जिस संस्थाका मुख्य काम लोगों को कताईकी शिक्षा देना और उसे लोकप्रिय बनाना हो, उसका काम कोरे भाषणकर्त्ताओंसे नहीं चल सकता। और न कताई करनेवाले लोग उन वाद-विवाद सभाओंका संचालन कर सकते हैं जिनमें वक्तव्य-कलाको ही सर्वाधिक महत्त्वकी वस्तु माना जाता हो।

एक और मित्रने दूसरी आपत्ति उठाई है, जो ठीक है। उनका कहना है कि अगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी विशुद्ध रूपसे कार्यकारिणी समिति होती तो आपकी बात सही हो सकती थी। पर वे कहते हैं कि यह सभी तरहके मसलों पर विचार और बहस करनेवाली समिति भी है और चूँकि यह आगामी कांग्रेसके लिए