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मुसलमानोंके साथ उनका सलूक हर अखबार पढ़नेवालेके सामने दिनके उजालेकी तरह साफ है। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आप इन हिन्दू-नेताओंकी तारीफ और मुसलमान नेताओंकी बुराई करके हिन्दू-मुस्लिम एकताको एक डग भी आगे नहीं बढ़ा पायेंगे।

इसी तरह हिन्दू मित्र मुझसे कहते हैं कि मैं जबतक अली भाइयों और मौलाना बारी साहबपर एतबार रखे रहूँगा तबतक हिन्दू-मुस्लिम एकता गैरमुमकिन है। इन सभी मित्रोंको समझ लेना चाहिए कि यदि वर्तमान हिन्दू और मुस्लिम नेताओंका विश्वास न किया जाये तब तो दोनों समुदायोंमें एकताकी आशा ही नहीं की जा सकती; और की भी जा सकती है तो इन नेताओंकी मृत्युके बाद ही। यहीं भाई आगे कहते हैं:

आपको आगाखानी साहित्य और तबलीगका जिक्र करनेकी क्या जरूरत थी? उनके कारण हमारे राष्ट्रीय आन्दोलनको कोई भी नुकसान नहीं पहुँचता। वे तो निहायत शान्तिपूर्ण ढंगसे तबलीगका काम चला रहे हैं। आप मुसलमानोंके प्रचारके निकृष्ट तरीकोंको सामने रखते हैं। पर जरा शुद्धि-आन्दोलनको तो देखिए। आपने यह लिखकर एक बड़ा खतरा मोल ले लिया है कि उस पुस्तिकामें लिखी तदबीरोंके मुताबिक निजामकी रियासतमें व्यापक रूपसे काम किया जा रहा है। यह लिखकर आपने अनजाने ही एक मुस्लिम रियासतपर चोट की है।

इन पत्र-लेखक महोदयका रुख उन कार्यकर्त्ताओंके रुख जैसा है जिनकी संख्या बढ़ती जा रही है और जो यह चाहते हैं कि हम जैसा सोचते हैं वैसा न कहें और चुप्पी साधे रहें। मैं इस बातको तो समझ सकता हूँ कि हर गन्दी चीज लोगोंके सामने न रखी जाये, पर जो बातें साफ तौरपर हमारी नजरोंके सामने आती हैं और जो हर शख़्सके दिमागमें चक्कर काट रही हों, उनकी ओरसे आँखें बन्द नहीं की जा सकतीं। अपने जोशकी धुनमें लेखक इस बातपर ध्यान देना भूल गया है कि मैंने किसी भी मुस्लिम रियासतपर चोट नहीं की। मैंने तो इतना ही कहा है कि "सुना है", तबलीगका आपत्तिजनक काम निजामकी रियासतमें व्यापक रूपसे चल रहा है।

पत्र-लेखक महोदय आगे कहते हैं :

मेरी समझमें नहीं आता कि गो-वध और बाजा एक ही श्रेणीमें कैसे आ सकते हैं। मुसलमानोंके लिए 'कुरान' में गायकी कुरबानीका हुक्म है मगर हिन्दुओं को ऐसी कोई धर्माज्ञा नहीं है कि वे मसजिदोंके सामने बाजा बजायें। हिन्दुओंको सरकारी अस्पतालों और दफ्तरोंके सामने बाजा बन्द करना पड़ता है, मगर उनको हठवादिता उन्हें मसजिदके सामने बाजा बन्द करनेकी इजाजत नहीं देती।

लेखक इस बातको जान लें कि 'कुरान' में मुसलमानोंके लिए गायकी कुरबानी करना जरूरी नहीं बताया गया है। यह जरूर कहा जाता है कि 'कुरान' में कुछ

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