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इस आदर्शको व्यवहार रूप देनेका प्रयत्न कर रहे हैं। यदि इस्लामके अनुसार इस धर्मको स्वीकार कर लेनेके बाद इसे छोड़कर पुनः अपना पहला धर्म अंगीकार कर लेना दण्डनीय न हो तो उक्त कानूनको इस्लामकी भावनाके विरुद्ध मानना चाहिए और इसीलिए उसे जल्दीसे-जल्दी रद कर दिया जाना चाहिए। यदि वस्तुस्थिति वैसी ही हो जैसा मैंने बताया है तो मुझे आशा है कि मुसलमान नेता भोपालकी महाविभव बेगम साहिबासे यह कानून रद कर देनेका अनुरोध करेंगे।

नरम दल और खादी

एक नरमदलीय मित्र लिखते हैं:

मैं खादीके सवालपर बराबर सोचता रहा हूँ और अपने सहयोगियोंके साथ उसपर विचार-विमर्श भी करता रहा हूँ। मैंने पाया है कि खादीके गुणोंके सम्बन्धमें कोई मतभेद नहीं है। परन्तु जब खादीके प्रचारके आन्दोलनका सम्बन्ध आपकी इस उक्तिके साथ जोड़ा जाता है कि खादी तो सविनय अवज्ञाकी एक तैयारी है तभी कठिनाई उपस्थित हो जाती है। अगर खादी-आन्दोलनको अलग रखा जाये और वह असहयोग आन्दोलनका हिस्सा न हो तो मैं समझता हूँ कि खादी आन्दोलन ज्यादा विस्तृत और व्यापक हो सकेगा।

पत्र-लेखकने जिस पूर्वग्रहका उल्लेख किया है वह उतना ही पुराना है जितना कि असहयोग आन्दोलन। मैंने असंख्य अवसरोंपर यह दिखानेकी कोशिश की है कि सिवा सत्याग्रहीके किसी भी शख्सको खादीके सम्बन्धमें सविनय अवज्ञाका खयाल न करना चाहिए। सविनय अवज्ञाका खादीके साथ कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। खादीकी पुनः प्रतिष्ठाके पूर्व मैने सविनय अवज्ञाकी कितनी ही लड़ाइयाँ लड़ी हैं। उदाहरणके लिए खेड़ाके सत्याग्रही खादीके बारेमें कुछ नहीं जानते थे। यहाँतक कि बोरसदके संघर्षमें भी वल्लभभाईके नेतृत्वमें चलनेवाले कार्यकर्त्ताओंने खादीका व्रत नहीं लिया था। कांग्रेसके स्वयंसेवकोंके अलावा किसीके लिए यह लाजिमी नहीं था कि वह सत्याग्रहियोंमें अपना नाम लिखाने के पहले खादी पहने। कारण साफ था। वह स्वराज्य स्थापित करनेकी लड़ाई नहीं थी। स्वराज्यकी स्थापनाके निमित्त सविनय अवज्ञाके लिए मैंने खादीको जो अनिवार्य बताया है, उसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि जबतक यहाँ घर-घरमें खादीका प्रचार न हो जाये तबतक मैं स्वराज्यको असम्भव मानता हूँ। दूसरा यह कि सर्वसाधारणको अनुशासनबद्ध करनेमें यह बहुत सहायक होगी और यह तो निर्विवाद है कि अनुशासनके बिना सार्वजनिक सविनय अवज्ञा असम्भव है। नरम दलवालोंको तथा दूसरे लोगोंको भी यह समझना चाहिए कि सविनय अवज्ञाको टालने का सबसे अच्छा रास्ता यही है कि हर आदमी कांग्रेसके रचनात्मक कार्यक्रमको अपना ले---विशेषकर उसके तीन अंगोंको। अगर हम सब लोग एक मन होकर हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित करनेके लिए काम करें और घर-घरमें हाथ-कती खादीका प्रचार कर सकें और यदि हिन्दू लोग एक होकर अस्पृश्यताके अभिशापको मिटा दें तो स्वराज्य सामने दिखाई देने लगेगा। कुछ ऐसे