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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अंग्रेज भी हैं, जो खादी पहनते हैं; किन्तु सविनय अवज्ञा या असहयोगके साथ हमदर्दी रखनेके खयालतक का वे विरोध ही करेंगे।

नारायणवरम् और अस्पृश्यता

नीचे जो ममस्पर्शी विवरण दे रहा हूँ, उससे अस्पृश्यताके अभिशापके विरुद्ध एक जबरदस्त आन्दोलन छेड़नेकी आवश्यकता प्रकट हो जाती है:

तीनको छोड़कर बाकी सभी सार्वजनिक गलियोंमें पंचमोंको आने-जाने दिया जाता था। ये तीनों गलियाँ कल्याण वेंकटेश्वर मन्दिरके उत्तर, दक्षिण तथा पूर्वमें पड़ती हैं। पूर्व दिशामें जो गली है वह मन्दिरके सामने पड़ती है। तीनों गलियोंमें अधिकांशतः ब्राह्मण ही रहते हैं। मन्दिरकी जमीनपर अधिकांशतया पंचम लोग खेती करते थे। पंचम लोग पहले धानको लाकर मन्दिरसे कुछ दूरीपर ही जमा कर देते थे किन्तु मन्दिरके अधिकारियोंके लिए उसे वहाँसे उठाकर ले जाना कठिन होता था। इसलिए उन्होंने पंचमोंको उक्त गलियोंसे धान ले आने और उसे मन्दिरके मुख्य फाटकपर रख देनेकी छूट दे रखी थी। इसके बाद गाँवमें एक अनौपचारिक ढंगकी पंचायतकी स्थापना हुई। पंचायतके ब्राह्मण-अध्यक्षका सफाईके लिए पंचम मेहतरोंके बिना काम नहीं चल सकता था। उसने उन्हें गाँवमें रहने, गाँवमें ही अपना खाना पकाने और रातमें सोनेकी भी इजाजत दे दी। एक ब्राह्मण सज्जनने दिन-रातमें दुश्मनोंसे अपनी सुरक्षाके लिए पंचम नौकर रख लिये। उन्हें इन ब्राह्मणोंकी गलियोंमें खाने और रातमें सोनेकी इजाजत दे दी गई। यह नई बात पुराणपंथी हिन्दुओंकी दृष्टिमें बहुत आपत्तिजनक है। फिर भी किसीने आपत्ति नहीं की।

फिर श्री सी० वी० रंगम् चेट्टीने ताल्लुका बोर्ड स्कूलके पास मुख्य गलीमें ९-३-१९२४ को पंचमोंके लिए एक बुनाई स्कूल खोला। कृपापूर्वक और साहसके साथ श्री रंगा स्वामी आयंगारने स्कूलके लिए अपने मकानका उपयोग करनेकी अनुमति दे दी, इसलिए स्कूल उन्हींके घरमें खोला गया। विधान सभाके सदस्य श्री सी० दोराईस्वामी आयंगारने स्कूलका उद्घाटन किया। दो ब्राह्मणोंने, जिनकी श्री रंगम् चेट्टीसे निजी शत्रुता है, विरोध शुरू किया। उन्होंने कुछ दलाल जुटाये और ग्रामवासियोंकी एक सभा बुलाई। इसमें उन्होंने माँग की कि श्री रंगम् चेट्टी पंचम बुनाई स्कूलको गाँवसे हटा लें, क्योंकि पंचमोंका गाँवमें रहना शास्त्रोंके विरुद्ध है। जब उनसे पूछा गया कि यदि बात ऐसी है तो फिर पहले तीन अवसरोंपर पंचमोंको क्यों नहीं रोका गया, तब उन्होंने जवाब दिया कि उस समय तक शास्त्रोंकी यह व्यवस्था उनकी नजरोंसे नहीं गुजरी थी। श्री रंगम् चेट्टीने वहाँसे स्कूल हटानेसे इनकार कर दिया। इसपर अधिकांश ब्राह्मणोंने उनका तथा हनुमान पुस्तकालय और वाचनालयका बहिष्कार शुरू कर दिया। उन्होंने अन्य जातियोंके मुखियोंसे भी बहिष्कार करनेका अनुरोध