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किया। उनका अनुरोध किसीने नहीं माना। इसपर ब्राह्मणोंने उन गलियोंसे भगवानका रथ निकालना बन्द कर दिया।

एक ब्राह्मण सज्जन, जो वार्षिक ब्राह्मण-उत्सवके लिए बहुत बड़ी रकम इकट्ठी करते हैं, चाहते थे कि कमसे-कम इस उत्सवके दौरान स्कूल बन्द रहे। श्री चेट्टी इस शर्तपर स्कूल बन्द करनेको तैयार थे कि ब्राह्मण लोग बहिष्कार उठा लें। ब्राह्मणोंके प्रवक्ताके रूपमें सभामें मन्दिरके अमीनने कहा कि अब बहिष्कार नहीं किया जायेगा। इसपर श्री चेट्टीने १७ दिनोंके लिए स्कूल बन्द करा दिया।

पंचम लोग त्यौहारोंके दिन भी खरीद-फरोख्त करने, सफाई करने और यदि मालिकोंके घर कोई छोटा-मोटा काम हुआ तो वह काम करनेके लिए निर्बाध रूपसे गाँवमें आते-जाते हैं। उनके इन मालिकोंमें ब्राह्मण भी हुआ करते हैं। एक दिन सुबह बुनाई स्कूलका एक पंचम विद्यार्थी गाँवमें आया और उसने पुस्तकालयके बगीचेमें कुछ काम किया। लगता है, दोपहर बाद बुनाई स्कूलमें वह कुछ सुस्ताने लगा। स्कूलमें पीछे खुलनेवाला कोई दरवाजा नहीं था। इसपर मन्दिरका अमीन कुछ लोगोंको साथ लेकर उसके पास गया और उन लोगोंने उसके साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। फिर वे सब पुस्तकालय गये और वहाँ उन्होंने श्री रंगम् चेट्टीपर आरोप लगाया कि उन्होंने अब भी स्कूल खोल रखा है और उन्हें गालियाँ दीं। रंगम् चेट्टी उन लोगोंको लेकर बुनाई स्कूल आये और दिखा दिया कि स्कूल सचमुच बन्द है। इसके बाद कुछ बदमाशोंको पैसा दिया गया और वे नशेमें चूर होकर श्री रंगम् चेट्टीके पास पहुँचे। लेकिन श्री चेट्टी किसी तरह उनके चंगुल से बच निकले। इसके बाद मन्दिरके अमीनने एक सार्वजनिक सभा की, उसमें तथ्योंको गलत रूपमें पेश किया, सभी मुखियोंको पियक्कड़ोंके जरिये डराया-धमकाया और उन सबको श्री रंगम् चेट्टीका बहिष्कार करनेपर मजबूर किया। पंचम भी बुलाये गये। उन्हें डरा-धमकाकर यह कह दिया गया कि वे अपने बच्चोंको बुनाई स्कूलमें न भेजें। सभा खत्म होनेपर श्री रंगम् चेट्टीके घरपर पत्थर फेंके गये। मुझे विश्वस्त सूत्रोंसे ज्ञात हुआ है कि उनकी हत्याका षड्यन्त्र किया जा रहा है। पुठूरके पुलिस इन्स्पेक्टर नारायणवरम् आकर सही स्थिति देख गये हैं। सुना है, वे गिरोहके कुछ मुखियोंके खिलाफ कार्रवाई करनेकी बात सोच रहे हैं। हत्यारोंसे अपनी जान बचानेके लिए श्री रंगम् चेट्टीके मित्रोंने उन्हें गाँव छोड़ देनेपर विवश किया और अब वे अपने भाईके साथ २३, नारायण मुदाली स्ट्रीट, जी० टी०, मद्रासमें रह रहे हैं। यदि कोई उनकी रक्षाके लिए सामने आ जाये तो वे आज भी नारायणवरम् जाकर स्वयं खर्च उठाकर यह सेवा कार्य फिर शुरू करनको तैयार हैं।