पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५५
आज बनाम कल

छेड़नेपर भी अपनेको स्वराज्यवादी सिद्ध करनेकी आवश्यकता बनी रहती है। बोरसदके लाखों लोगोंके लिए सत्याग्रह आरम्भ करनेसे पहले खादी पहननेकी अथवा दारू छोड़नेकी जरूरत न थी; लेकिन कार्यकर्त्ताओंके लिए तो थी ही। अब यदि बोरसदके धाराला[१] भाई और बहनें स्वराज्यके लिए सत्याग्रह करना चाहें तो उन्हें खादी अवश्य पहननी चाहिए, दारू पीना छोड़ना चाहिए और अस्पृश्यताके पापसे मुक्त होना चाहिए। मुझे तो यह बात स्वयंसिद्ध जान पड़ती है। यदि हम खादीको सर्वमान्य करवाये बिना सत्ता प्राप्त कर लें तो खादी-प्रचार इत्यादि काम लोगोंके साथ जबरदस्ती किये बिना सम्भव न होंगे। यदि ऐसा हुआ तो वह सच्चा स्वराज्य तो नहीं ही होगा; और फिर यदि बहुत-से लोग खादीके भक्त नहीं बनते तो हम खादीको सर्वमान्य बनानेका कानून भी नहीं बना सकते। इसलिए इतने उदाहरणोंसे यह देखा जा सकता है कि हम जिन शर्तोंको नई समझते हैं वे नई नहीं, पुरानी हैं। अब तो यह बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि सामुदायिक कानून-भंगकी एक भी शर्त इतनी कड़ी नहीं है जिसको पूरा न किया जा सके। लेकिन सत्याग्रहके संचालकों के लिए तो कड़ी शर्तों आवश्यक हैं और हमेशा आवश्यक थीं। संगीतशास्त्री बननेके लिए वर्षोकी तालीमकी जरूरत होती है। उसे सूक्ष्मसे-सूक्ष्म स्वरपर अधिकार होना चाहिए और भद्दे और बारीक स्वरोंकी परीक्षा करनेकी क्षमता होनी चाहिए, लेकिन समाजसे तो केवल इतनी ही अपेक्षा की जाती है कि वह संगीतशास्त्रीके स्वरोंको समझ-भर ले। सत्याग्रहके नेताको संगीतशास्त्री-जैसा होना चाहिए।

मैं यहाँ एक बात स्पष्ट किये देता हूँ। अखबारोंमें मुझपर ऐसा आरोप लगाया जाता है कि मैं सत्याग्रहमें हर बार कोई-न-कोई बारीकी निकालता रहता हूँ। इससे तो यही सिद्ध होता है कि प्रत्येक सत्याग्रहमें गांधीको उपस्थित रहना चाहिए।

यह कोरा बहम है। बोरसद, नागपुर और चिरला-पेरलामें[२] मैं नहीं था। हम कह सकते हैं कि मुझसे तो सलाह लेनेके लिए भी कोई नहीं आया था तथापि ये सत्याग्रह कैसे चल सके? लेकिन यदि मुझसे सलाह लिये बिना सत्याग्रह करनेवाला अनुभवी और संयमी न हो तो वह अवश्य घबरा जायेगा। लेकिन अब हम इस हदतक पहुँच गये हैं कि जिसकी इच्छा हो वह अपनी जवाबदेहीपर सत्याग्रह कर सकता है। यदि कोई मुझसे सलाह माँगे तो मैं उसे अपनी मतिके अनुसार सलाह अवश्य दूँगा। लेकिन मुझसे सलाह लिए बिना सत्याग्रह शुरू ही नहीं किया जा सकता, ऐसी कोई बात नहीं है। ऐसा हो तो सत्याग्रह शस्त्र निरर्थक ही माना जायेगा। मैं कहाँ-कहाँ जा सकता हूँ और मैं कबतक जीवित रहूँगा? यदि सत्याग्रहका शस्त्र नित्य है तो उसे चलानेवाले अनेक स्त्री-पुरुष होने चाहिए और हैं भी।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४
 
  1. गुजरातकी एक योद्धा जाति।
  2. यहाँ इन तीनों स्थानोंपर क्रमशः १९२३-२४ १९२३ तथा १९२१ में किये गये सत्याग्रह आन्दोलनोंकी ओर संकेत हैं।