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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। जिस जगह रक्षा करने जानेको हमारा मन कहे, हमें उसी जगह पहुँच जाना चाहिए और वहाँ मर मिटना चाहिए।

जिस प्रकार योद्धाओंकी सेना बन सकती है उसी प्रकार सत्याग्रहियोंका संघ बन सकता है। हजारों धारालाओंके लिए अकेले रविशंकर पर्याप्त हो रहे हैं। रविशंकर तो अभी जीवित हैं। सैकड़ों रविशंकर पैदा होकर निर्बल हिन्दुओंको हमलोंसे बचा सकते हैं और ऐसा करते हुए निर्बलको बलवान् भी बना सकते हैं।

यह तो हुई हमलोंकी बात। गायकी रक्षाके लिए तो हिन्दुओंको मुसलमानोंसे जबरदस्ती हरगिज नहीं करनी चाहिए; मुसलमानोंके दिलोंको जीतकर ही गायोंकी रक्षा की जानी चाहिए।

जहाँतक हो सके हिन्दू मस्जिदोंके सामने बाजे न बजायें; मुसलमानोंके साथ सलाह-मशविरा करें और अगर मुसलमान मानें ही नहीं और बेजा दबाव डालें तो फिर हिन्दू बिलकुल न दबें, बराबर बाजे बजाते रहें और ऐसा करते हुए मर जायें।

इसके अलावा दूसरी बातें भी हैं; परन्तु वे छोटी-छोटी हैं जैसे धारासभामें कितने मुसलमान जायें। मैं तो जितने जाना चाहें उतने जाने देना चाहता हूँ। मेरी रायमें अभी यह सवाल ही पैदा नहीं होता। जो लोग असहयोगका पालन कर रहे हैं, उनके लिए धारासभा या सरकारी नौकरियोंका विचार करनेकी बात ही नहीं उठती।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४

१२८. वल्लभभाईकी परेशानी

मैंने जबसे 'नवजीवन' का सम्पादन कार्य हाथमें लिया है, वल्लभभाई तभी से एक बड़ी कठिनाईमें पड़ गये हैं। वे मेरे नामपर दस लाख रुपया इकट्ठा करके गुजरातकी सेवा करना चाहते हैं। वे इस स्वार्थरहित कार्यमें 'नवजीवन' से मदद लेते थे। अब तो मैं सम्पादक हो गया हूँ, अतः मैं अपने लिए धन एकत्रित करनेकी बात अपने ही पत्रमें प्रकाशित करनेकी धृष्टता कैसे कर सकता हूँ? इस संकोचके कारण वल्लभभाईकी विनयपत्रिकाओंका 'नवजीवन' में छपना बन्द हो गया है!

अब समस्या यह है: यदि वल्लभभाईको दस लाख रुपये न मिल पाये तो वे मेरे बहिष्कारका आदेश जारी कर देंगे और मुझसे सम्पादकका पद छीन लेंगे। लेकिन यदि मैं इस भयसे उनकी इन पत्रिकाओंको छापता रहूँ तो मैं निर्लज्ज और साथ ही कायर भी माना जाऊँगा। मुझे सम्पादक-पदका त्याग नहीं पुसायेगा और खुले तौरपर निर्लज्ज बनने की बात भी नहीं पुसा सकती। इसलिए मैंने मध्यम मार्ग अपनानेका विचार किया है और वह यह है कि मुझे वल्लभभाईका भ्रम दूर कर देना चाहिए।

सीधी बात यह है कि यदि गुजरातको रचनात्मक कार्य पसन्द हो तो वल्लभभाईको पैसेकी जरूरत तो पड़ेगी ही। बहुत-से लोग रचनात्मक कार्यके निमित्त न