पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५९
"चमड़ेके तस्मेके लिए भैंस"

सही, मेरे नामसे पैसा देनेके लिए तैयार हो जायेंगे, इस लोभसे ही धन-याचनाके साथ मेरा नाम जोड़ा गया था। वल्लभभाईको पैसेसे काम है, फिर चाहे वह किसी भी नामसे क्यों न मिले? यदि गुजरात यह मानता हो कि वल्लभभाईने गुजरातकी अच्छी सेवा की है, उन्होंने गुजरातके लिए फकीरी ली है और लोगोंको लिवाई है; और यदि वह यह मानता हो कि उसके पैसेका दुरुपयोग नहीं होता, उसका हिसाब रखा जाता है और प्रकाशित भी किया जाता है, यदि उसे लगता हो कि विद्यापीठका काम कठिन होनेपर भी बहुत मूल्यवान है, उसके द्वारा हमारे हजारों बच्चे आजादीकी तालीम हासिल कर रहे हैं, खादीका प्रचार हो रहा है और अन्त्यजोंकी सेवा हो रही है---यदि सभी गुजरातियोंका ऐसा विश्वास हो तो गुजरात गांधीकी झोलीमें अर्थात् स्वराज्यकी थैलीमें अथवा गरीबों की थैलीमें दस लाख रुपया डाल दे। "नाच न जाने आंगन टेढ़ा" कहावतको चरितार्थ करते हुए, सभी व्यापारकी मन्दी आदिका बहाना बता सकते हैं; लेकिन यदि लोग व्यापारकी मन्दीके बावजूद खाते हैं, पीते हैं, विवाह और अन्य कार्य करते हैं तो वे देशके इस आवश्यक कार्यको भी करें। यदि प्रत्येक गुजराती यह मानता है कि गुजरातमें कांग्रेसकी नैया खेना उसका कर्त्तव्य है तो वह इसमें 'फूल नहीं तो पँखुड़ी' अवश्य डाल दे और वल्लभभाईकी परेशानी दूर कर दे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४

१२९. "चमड़के तस्मेके लिए भैंस"

एक भाईने मुझे "लक्ष्मीका विनाश" नामक चौपतिया भेजी है। उसमें न तो प्रकाशकका ही नाम है और न छापेखानेका ही। यह चौपतिया मुफ्त बाँटी जा रही है। इसमें लेखकका उद्देश्य अपनी पुस्तकें बेचकर पैसा कमाना है। लेकिन उसने इस तुच्छ उद्देश्यसे प्रेरित होकर मुसलमान समाजपर आक्रमण किया है। नमूनेके रूपमें कुछ पंक्तियाँ दे रहा हूँ। "मुसलमान यवन हैं।" "हम जिनको प्रोत्साहन देते हैं, वे कैसे लोग हैं? वे मुर्गों, बकरियों और गायोंकी गर्दनोंपर छुरी चलाते हैं।" आप जिनके हाथका छुआ पानी तक नहीं पीते उनके प्रति दयाभाव कैसा?" "आप मुसलमानोंसे बही-खाते क्यों खरीदते हैं?" "आपका धर्म दयामय है और यवनोंका पापमय।" इसमें ऐसी और भी धर्मान्धतापूर्ण बातें भरी हैं। इसमें मेरे नामका भी दुरुपयोग किया गया है। मुझे उम्मीद है कि चौपतियाको कोई हिन्दू छुएगा भी नहीं। मुझे इससे भी अधिक उम्मीद इस बातकी है कि इसका लेखक स्वयं ही अपने दयाधर्मको भंगकर बैठनेके कारण पश्चात्ताप करेगा और पुस्तिकाकी प्रतियोंको जला डालेगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४