पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२९०

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१३०. कार्यकर्त्ताओंसे

उपरोक्त अंश मैंने एक भाईके पत्र से[१] उद्धृत किया है। मैंने इसे संक्षिप्त करनेके विचारसे कुछ विशेषण काट दिये हैं। प्रत्येक कार्यकर्ताको एकान्तमें बुलाकर बात करनेका मेरे पास समय ही नहीं है। लेकिन जिन लोगोंको कोई खास जानकारी हो, मैं उन्हें अपनी वह खास जानकारी अथवा अपने वे खास सुझाव भेजनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ। बहुत-से लोग मुझसे भी ज्यादा खराब लिखावटमें पत्र भेजते हैं। उनसे मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे मुझपर दया करें और साफ अक्षरोंमें लिखा करें। बहुत लोग लम्बी-लम्बी प्रस्तावनाएँ लिख मारते हैं। आधा पत्र पढ़नेके बाद ही उनके कथनका हेतु समझमें आता है। मेरा उनसे निवेदन है कि वे प्रस्तावना न लिखा करें। बहुतसे लोग अपने पत्रको विशेषणोंसे अलंकृत करते हैं अथवा यों कहें कि बिगाड़ते हैं। मैं उन्हें विशेषणोंको न प्रयुक्त करनेकी सलाह देता हूँ। मैं तो इस प्रकारके पत्र चाहता हूँ:

"आपकी १५-६-२४ के 'नवजीवन 'में की गई माँगके सम्बन्धमें निवेदन है कि मैंने स्वयं कांग्रेसका काम छोड़ दिया है, क्योंकि अ, ब, अथवा स ने, जिनके साथ मेरा सम्बन्ध था, अमुक समय अमुक अनुचित कार्य किया था अथवा उनके और मेरे विचार परस्पर मिल नहीं रहे थे; अथवा उन्होंने मेरे प्रति अमुक आचरण किया था अथवा मेरे ही विचार अब बदल गये हैं। मेरा विश्वास अहिंसा, सत्य, चरखे अथवा बहिष्कारपर से उठ गया है। मेरी सलाह है कि कांग्रेस जब अमुक सुधार करेगी, अमुक कार्योंको त्याग देगी अथवा अमुक कार्यकर्त्ताओंको निकाल देगी कार्य तभी चल सकेगा।"

यदि मुझे ऐसे स्पष्ट तथ्योंसे युक्त पत्र प्राप्त हों तो मुझे मदद मिलेगी। सार्वजनिक जीवनमें कुछ निजी बातोंपर पर्दा डाले रखना मेरे विचारसे लोकहितके विरोधी बात है। लेकिन मुझसे परिचित लोग जानते हैं कि मैं नाम तो प्रकाशित ही नहीं करता। मैं पत्रोंको इकट्ठा नहीं करता और मैंने अमूल्य पत्रतक फाड़कर फेंक दिये हैं। मैं केवल सार्वजनिक उपयोगके पत्रोंको ही सँभालकर रखनेका यत्न करता हूँ लेकिन प्राप्त तथ्योंका कतई उपयोग न किया जाये, इस शर्तके साथ भेजा गया पत्र तो मुझे बिलकुल ही नहीं चाहिए, क्योंकि मुझे ऐसी किसी बातको जाननेकी इच्छा नहीं रहती जिसका सार्वजनिक रूपसे उपयोग न किया जा सके। मुझे कोई सज्जन गुमनाम पत्र भी न लिखें। मेरे पास ऐसे पत्र अब भी आते रहते हैं। उपर्युक्त पत्रसे पता चलता है कि हमारा सार्वजनिक जीवन अभी निर्मल नहीं हुआ है। इस हदतक हमारा असहयोग आन्दोलन निष्फल माना जायेगा अथवा वह कितना सफल हुआ है

 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-लेखकने सुझाव दिया था कि गांधीजीको गुजरातमें फिर कार्य आरम्भ करनेसे पहले वास्तविक स्थितिको पूरी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए।