पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६९
टिप्पणियाँ

कि मुसलमानोंने भी अपने पर्चोमें हिन्दुओंको ऐसी ही गालियाँ दी हैं। लेकिन इससे हिन्दुओं या आर्यसमाजियों द्वारा दी गई गालियोंका औचित्य सिद्ध नहीं होता और न जवाबी कार्यवाहीकी दृष्टिसे इसे ठीक कहा जा सकता है। मैंने तो इन पुस्तिकाओं और पर्चोकी ओर कोई ध्यान ही न दिया होता, यदि मुझे यह न बताया जाता कि इनकी पाठक-संख्या बहुत बड़ी है। स्थानीय नेताओंको चाहिए कि वे इनका प्रकाशन बन्द करानेका या कमसे-कम इनको निन्दित ठहरानेका उपाय खोज निकालें और इनके बजाय ऐसा स्वस्थ साहित्य प्रकाशित करें जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरेके धर्मके प्रति सहिष्णुता बरतें।

एकके मुकाबले तीन

एक मुसलमान भाईने लिखा है कि भोपाल राज्यका धर्मत्याग सम्बन्धी कानून तो निस्सन्देह बुरा है ही, लेकिन उसके खिलाफ जो आन्दोलन चल रहा है उसमें भी कोई तत्त्व नहीं है। उनका कहना है कि यह कानून पुराना है और कभी अमलमें नहीं लाया गया। वे दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि उस राज्यमें हिन्दुओंके साथ बहुत न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है और बहुतसे हिन्दू प्रायः राज्यके ऊँचेसे-ऊँचे पदोंपर रहे हैं। वे आगे कहते हैं:

लेकिन क्या आपको मालूम है कि पलोल, रीवाँ और भरतपुरकी हिन्दू रियासतोंमें क्या-कुछ हो रहा है? पलोलकी चर्चा तो आपने स्वयं भी की थी। भरतपुरमें तीन मसजिदें गिराई जा चुकी हैं। कहते हैं, रीवाँ राज्यमें इस आशयका आदेश जारी है कि यदि कोई हिन्दू मुसलमान बनेगा तो उसे एक सालकी सजा दी जायेगी और उसे मुसलमान बनानेवाले व्यक्तिको दो साल की।

यदि ये तथ्य सही हों तो हिन्दुओंको ऐसे कानूनके खिलाफ शिकायत करनेका कोई कारण नहीं रह जाता, जो किताबमें ही बन्द है। मेरी व्यक्तिगत राय तो यह है कि एक अन्यायके प्रति दूसरा अन्याय कर देनेसे न्याय हासिल नहीं होता। इस सिद्धान्तके अनुसार अन्याय जहाँ कहीं दिखाई पड़े उसकी भर्त्सनाकी जानी चाहिए। जहाँ-कहीं धर्म-परिवर्तन कानूनकी दृष्टिसे दण्डनीय है वहाँ असहिष्णुता है, ऐसा मानना चाहिए। उसे मिटा देना हमारा धर्म है। लेकिन हिन्दुओंको सबसे पहले अपना निवेदन रियासतोंके सामने रखना है।

केनियाके भारतीय

केनियाके भारतीय अत्यन्त ही कठिन परिस्थितियोंमें बहादुरीके साथ अपना संघर्ष चला रहे हैं। सर्वश्री गुलाम हुसेन, अलादीन अहमदभाई करीम, वलीभाई इस्माइल, कासिम नूरमुहम्मद तथा अन्य बहुतसे लोग भी जेल जा चुके हैं। और अब समाचार मिला है कि श्री देसाईको भी वही इज्जत दी गई है। केनियाके भारतीय इस युद्धको जारी रखनेके लिए बधाईके पात्र हैं। लेकिन सविनय अवज्ञाके लिए जो कानून चुना गया है, उसका सम्बन्ध बहुत थोड़े ही भारतीयोंसे है और उस कानूनको