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फिरसे आर्यसमाजियोंकी चर्चा

हममें से कुछ लोग हिन्दी या उर्दू सीख रहे हैं, हम 'गीता' और 'पुराणों' का भी पाठ करते हैं।...६ बजे सुबह हम प्रार्थना करते हैं, जिसमें जाति या धर्मका खयाल किये बिना सभी लोग शामिल होते हैं...अधिकारी लोग हमारा बड़ा खयाल रखते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १९-६-१९२४

१३९. फिरसे आर्यसमाजियोंकी चर्चा

कितने ही आर्यसमाजी भाइयोंने आर्यसमाजके सिद्धान्तों और उनकी श्रेष्ठताके बारेमें मेरे अज्ञान (उनका ऐसा ही खयाल है) पर लम्बे-चौड़े लेख लिखकर भेजे हैं। मैं चाहता था कि उनमेंसे कमसे-कम एक पत्र तो अवश्य छाप सकूँ ताकि पाठकों को यह मालूम हो जाये कि आर्यसमाजी मेरी टीकाको किस दृष्टिसे देखते हैं। अन्तमें मुझे एक ऐसा पत्र मिल गया और उसे मैं खुशीके साथ प्रकाशित कर रहा हूँ। पत्रलेखक हैं गुरुकुल कांगड़ीके आचार्य रामदेवजी। उसमें से मैंने सिर्फ एक अनुच्छेद निकाल दिया है। मेरी रायमें यह अंश जल्दीमें लिखा गया होगा और वह उनकी योग्यताके अनुरूप भी नहीं था। उसके निकाल डालनेसे उनकी दलील कमजोर नहीं पड़ती और आर्यसमाजके संस्थापकके उत्साहपूर्ण गुणगानमें भी किसी तरहकी कोताही नहीं आती। आचार्य रामदेवजीका पत्र नीचे देता हूँ:[१]

मैं हमेशा से यह कहता आया हूँ कि मेरे जीवनमें धर्मका स्थान प्रमुख और राजनीति उसकी अनुवर्तिनी है। मेरे राजनीतिक क्षेत्रमें आनेका कारण यह हुआ कि मैं अपने धार्मिक जीवन अर्थात् सेवामय जीवनको उससे प्रभावित हुए बिना व्यतीत न कर सका। यदि उससे मेरे धार्मिक जीवनमें बाधा पड़े तो मैं उसे आज ही त्याग दूँ। इसलिए मैं इस सिद्धान्तसे सहमत नहीं हो सकता कि एक राजनीतिक नेता होनेके कारण मुझे धार्मिक बातोंके विषयमें नहीं बोलना चाहिए। मैंने आर्य- समाजके बारेमें इतना इसलिए लिखा कि मैंने देखा कि वह अपनी उपयोगिताको खोता जा रहा है और उसकी मौजूदा कार्रवाइयोंसे देशको हानि पहुँच रही है। चूँकि हम दोनोंके विचारोंका उद्गम स्थान एक ही है, इसलिए एक हितैषी और हिन्दू होनेके नाते मैं इन भाइयोंसे अपनी बात जोरसे कहने का हक मानता था। यदि वहाँ मैं विभिन्न धर्मोके गुण-दोषोंकी समीक्षा करता तो अवश्य ही मुझे इस्लामके बारेमें भी अपने विचार प्रकाशित करने पड़ते।

मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने मूल वेदोंको नहीं पढ़ा है। फिर भी मुझे उनका इतना ज्ञान अवश्य है कि मैं अपनी कोई राय बना सकूँ। आचार्य रामदेवका यह खयाल गलत है कि महर्षि दयानन्दके उपदेशोंके सम्बन्धमें मेरे खयाल पहलेसे ही

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। गांधीजीके उत्तरमें उक्त पत्रको प्रायः सभी बातें आ जाती हैं।