पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७३
अग्नि परीक्षा

जाये; पहली किश्त १५ अगस्त, १९२४ तक उनके पास पहुँच जाये और किश्तें उसके बाद हर महीने बराबर भेजी जाती रहें। जो सदस्य नियत तारीख तक नियत तादादमें सूत नहीं भेजेगा उसका पद खाली समझा जायेगा और मामूलके मुताबिक उसकी जगह दूसरे सदस्यसे भर दी जायेगी। पदच्युत शख्स विभिन्न संगठनोंकी[१] सदस्यताके लिए होनेवाले अगले आम चुनावों तक फिरसे खड़े होनेका अधिकारी नहीं होगा।

२. चूँकि इस बातकी शिकायतें पहुँची हैं कि प्रान्तीय मन्त्री तथा कांग्रेस संगठनोंके दूसरे पदाधिकारी उन हिदायतोंकी तामील नहीं करते, जो कांग्रेसके विधिवत् नियुक्त अधिकारियोंकी तरफसे उनके नाम समय-समयपर भेजी जाती हैं; इसलिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी निश्चय करती है कि उक्त बातोंके लिए जिम्मेदार जो पदाधिकारी विधिवत् नियुक्त अधिकारियोंके आदेशोंकी तामील नहीं करेगा वह अपनी जगहसे खारिज समझा जायेगा और उसकी जगहपर मामूलके मुताबिक दूसरा शख्स रख लिया जायेगा और वह पदच्युत व्यक्ति अगले साधारण चुनाव[२] तक फिरसे चुने जानेका पात्र नहीं समझा जायेगा।

३. अ० भा० कां० क० की रायमें यह वांछनीय है कि कांग्रेसके मतदातागण सिर्फ उन्हीं लोगोंको पदाधिकारी चुनें जो खुद कांग्रेसके ध्येयके अनुसार तथा उसके विविध असहयोग प्रस्तावोंके अनुसार, जिनमें पंचविध बहिष्कार अर्थात् मिलके कपड़ों, सरकारी अदालतों, स्कूलों, खिताबों और धारासभाओंके बहिष्कार शामिल हैं, चलते हों। अ० भा० कां० क० यह भी निश्चय करती है कि जो सभ्य इन पाँचों बहिष्कारों को न मानते हों और खुद उनके मुताबिक अमल न करते हों तो वे अपनी जगहोंसे इस्तीफा दे दें और उन जगहोंके लिए नया चुनाव किया जाये---इस्तीफा देनेवाले सज्जन चाहें तो चुनावके लिए फिरसे उम्मीदवार हो सकते हैं।[३]


४. कांग्रेस स्वर्गीय गोपीनाथ साहाके द्वारा श्री डेकी हत्यापर अपना अफसोस जाहिर करती है और मृतात्माके परिवारके प्रति अपनी समवेदना प्रकट करती है। कांग्रेसको इस बातकी गहरी प्रतीति है कि इस हत्याके पीछे भ्रमपूर्ण ही क्यों न हो देशप्रेम अवश्य था। फिर भी यह समिति इसकी और ऐसे तमाम राजनैतिक खूनोंकी सख्त निन्दा करती है और साथ ही अपना मत प्रबलताके साथ व्यक्त करती है कि ऐसे सभी कृत्य कांग्रेसके ध्येय और उसके शान्तिमय असहयोगके प्रस्तावोंसे असंगत हैं और उसकी यह राय भी है कि ऐसे कामोंसे स्वराज्यकी प्राप्तिमें बाधा उत्पन्न

 
  1. यद्यपि यह दण्डात्मक धारा गांधीजी द्वारा पेश किये गये प्रस्तावमें शामिल थी, लेकिन बादमें स्वराज्यवादियोंके विरोधका खयाल करके उन्होंने इसे निकाल दिया; देखिए "भाषण और प्रस्ताव: दण्ड विषयक धारापर", २८-६-१९२४।
  2. बादमें गांधीजीने इसे संशोधित रूपमें प्रस्तुत किया, देखिए "प्रस्ताव: अ० भा० कां० क० की बैठकमें", २९-६-१९२४।
  3. इसमें दो बार संशोधन हुआ। पहले कार्यकारिणी समितिमें और फिर गांधीजी द्वारा अ० भा० कां० क० में प्रस्तुत किये जानेके थोड़े पहले।
२४-१८