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अग्नि परीक्षा

प्रभुत्व लादने या किसी असम्भव माँगको पेश करनेकी बात नहीं है। अगर सदस्यगण यह समझें कि मैं गलतीपर हूँ तो उन्हें स्वयं अपने तथा देशके प्रति सच्चा बना रहनेकी खातिर मेरा जरा भी मुलाहिजा नहीं करना चाहिए। मैं मानता हूँ कि कोई शख्स ऐसा नहीं है जिसके बिना देशका काम रुक सकता हो। हममें से हरएक अपनी जन्मभूमि और उसके द्वारा मानव-जातिका ऋणी है। जिस घड़ी वह अपना ऋण चुकाना छोड़ दे उसी घड़ी उसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। मौजूदा सेवा-कार्योंका भार सौंपते समय किसीकी पिछली सेवाओंपर ध्यान देनेकी जरूरत नहीं है--फिर वे कितनी ही उज्ज्वल क्यों न हों। एक आदमीके खयालसे तो क्या सौ आदमियोंके खयालसे भी देशहितकी बलि नहीं दी जा सकती; बल्कि देशहितपर उसीका या उन्हींकी कुरबानी कर दी जानी चाहिए। मैं अ० भा० कां० क० के सदस्योंसे निवेदन करता हूँ कि वे एक दृढ़ उद्देश्यको लेकर, बिना पक्षपात और मिथ्या भावुकता और भावनाओंके अधीन हुए, इस प्रस्तावपर विचार करें। मेरी आपसे विनय है कि आप आँख मूँदकर मेरे पीछे न चलें। मैं कहता हूँ, इसलिए किसी बातका ठीक होना लाजिमी नहीं है। आपको खुद ही निर्णय करना चाहिए और आपको स्वयं अपनी इच्छा और क्षमताका ठीक ज्ञान होना चाहिए। इतने दिनोंके सम्पर्कसे आप यह तो जान ही गये होंगे कि मैं एक बेढब साथी हूँ और एक कड़ाईसे काम लेनेवाला आदमी हूँ। पर अब आप मुझे और भी ज्यादा सख्त पायेंगे।

मैंने यह दलील पढ़ी है कि खादीसे स्वराज्य नहीं मिल सकता। यह पुरानी दलील है। अगर हिन्दुस्तानको यूरोपके नफीस कपड़ोंकी--फिर वे चाहे मैनचेस्टरके बने हों, चाहे बम्बईकी मिलोंके--चाह हो तो उसे करोड़ों भाई-बहनोंके लिए स्वराज्यकी बातका खयाल ही छोड़ देना चाहिए। अगर हमारा विश्वास चरखेके पैगामपर हो तो हमें खुद चरखा कातना चाहिए। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि उन्हें इससे बड़ी प्रेरणा मिलेगी। अगर हम शान्तिमय उपायोंसे और इसलिए शान्तिमय अवज्ञाके द्वारा स्वराज्य लेना चाहते हैं तो शान्तिमय वायुमण्डल तैयार किये बिना चारा नहीं। अगर हम हजारोंकी भीड़में व्याख्यान झाड़नेके बदले वहाँ लोगोंको चरखा कातकर दिखायें तो शान्तिमय वायुमण्डल तैयार हो सकेगा। अगर मुझसे हो सके तो मैं तो कांग्रेस संगठनोंके हरएक सदस्यका मुँह तबतकके लिए बन्द कर दूँ---स्वयं अपना और शायद शौकत अलीका छोड़कर---जबतक कि स्वराज्य न मिल जाये। मैं हरएकको चरखेपर बैठा दूँ या किसी कताई-केन्द्रकी व्यवस्था सौंप दूँ। अगर यह मूक चरखा किसीके मनमें श्रद्धा, साहस और आशा पैदा नहीं कर सकता तो उसे चाहिए कि वह साफ-साफ ऐसा कह दे।

दूसरे और तीसरे प्रस्तावको पहले प्रस्तावका पूरक समझिए।

चौथे प्रस्तावके द्वारा हमारी अहिंसात्मक नीतिकी जाँच होगी। मैं गोपीनाथ साहा सम्बन्धी प्रस्तावपर देशबन्धु दासका वक्तव्य पढ़ चुका हूँ। पर उससे पिछले सप्ताहमें कही गई मेरी बातमें कोई अन्तर नहीं आता। जबतक कांग्रेस अपने वर्तमान