पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ध्येयपर कायम है और उसे मानती है तबतक मेरे तजवीज किये इस प्रस्तावमें समझौतेकी कोई गुंजाइश नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १९-६-१९२४

१४१. हिन्दू क्या करें?

हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी मेरे वक्तव्यके बारेमें मेरे पास बहुतेरे पत्र आये है। पर उनमें कोई बात नई या मार्केकी नहीं। अतएव मैंने उन्हें प्रकाशित नहीं किया। परन्तु बाबू भगवानदासने इस बारेमें एक पत्र लिखकर कुछ सवाल किये हैं। उस पत्रको[१] मैं सहर्ष प्रकाशित कर रहा हूँ और उसमें उठाये सवालोंके उत्तर भी दे रहा हूँ।

पहले दो सवालोंका जवाब तो खुद लेखकने ही दे दिया है। किन्तु वह मेरी रायमें आंशिक रूपसे ही सच है। यद्यपि हिन्दुस्तानके अधिकांश मुसलमान और हिन्दू एक ही 'नस्ल' के हैं तो भी धार्मिक वातावरणने उनको एक-दूसरेसे भिन्न बना दिया है। मैं इस बातको मानता हूँ और मैंने देखा भी है कि विचारोंके कारण मनुष्यका रूप और स्वभाव बदल जाया करता है। सिख लोग इस बातकी ताजा मिसाल हैं। मुसलमान बहुधा अल्पसंख्यक ही हैं और इसलिए समुदायके रूपमें वे आततायी बन गये हैं। फिर वे एक नई परम्पराके वारिस हैं। इससे उनमें जीवनकी इस अपेक्षाकृत नई प्रणालीके अनुरूप साहस दिखाई देता है। मेरी रायमें तो 'कुरान' में अहिंसाका मुख्य स्थान है; पर १,३०० सालसे साम्राज्य विस्तार करते आनेके कारण मुसलमान जाति लड़ाकू जाति हो गई है। इसलिए उन्हें धींगामस्तीकी आदत पड़ गई है। गुण्डापन धींगामस्तीका एक स्वाभाविक परिणाम है। हिन्दू लोगोंकी सभ्यता बहुत प्राचीन है और उनमें अहिंसा समायी हुई है। उनकी सभ्यता उन सारे अनुभवोंमें से कबकी गुजर चुकी है जिनमें से ये दो नई जातियाँ अभी गुजर ही रही हैं। अगर हिन्दू धर्ममें आजकलके अर्थमें कभी साम्राज्यवादिता रही भी हो तो एक तो वह जमाना बीत गया है इसलिए और दूसरे उसने या तो स्वयं सोच-विचारकर या कालचक्रकी गतिके अधीन होकर उसका त्याग कर दिया है। यहाँ अहिंसा भावकी प्रधानता होनेके कारण शस्त्रास्त्रोंका प्रयोग कुछ ही जातियों तक सीमित हो गया और इन जातियोंने उच्च कोटिके अध्यात्मवादी विद्वान और त्यागी लोगोंके अनुशासनमें चलना सदा अपना धर्म माना। इसलिए समाजके रूपमें हिन्दुओंके पास वे मानसिक उपकरण नहीं हैं जो लड़ने-भिड़नेके लिए आवश्यक होते हैं। परन्तु अपने आध्यात्मिक प्रशिक्षणको अक्षुण्ण न रख सकने के कारण वे शस्त्रकी जगह किसी दूसरे कारगर साधनका प्रयोग करना भूल गये और शस्त्रकी उपयोग-विधिके न जानने तथा उसके प्रति झुकाव न

 
  1. देखिए परिशिष्ट ३।