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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अविश्वास रखते थे। जहाँ कारण स्पष्ट हों वहाँ अविश्वास कदापि उत्पन्न नहीं होता। जब बहुतसे ऐसे कारण इकट्ठे हो जाते हैं जिनमें वास्तविकता कम और कल्पना ही अधिक होती है तब अविश्वास उत्पन्न हो जाता है। हम अभी इस बातको प्रत्यक्ष नहीं कर पाये हैं कि हमारे स्वार्थ एक हैं। प्रत्येक पक्ष धुंधले तौरपर यह मानता हुआ नजर आता है कि वह दूसरेको किसी-न-किसी तरकीबसे हटा सकता है। पर मुझे यह कबूल करते हुए जरा भी संकोच नहीं होता, जैसा बाबू भगवानदासने कहा है कि हमारा यह न जानना भी कि हम किस किस्मका स्वराज्य चाहते हैं, इस पारस्परिक अविश्वाससे बहुत-कुछ ताल्लुक रखता है। पहले मेरा खयाल ऐसा नहीं था। लेकिन उन्होंने मुझे यरवदा जेलमें सर जॉर्ज लॉयडके मेहमान होनेके पहले ही अपने मतका बहुत-कुछ कायल कर लिया था और अब तो मैं पूरी तरह उसी मतका हो गया हूँ।

वक्तव्यमें मैंने 'सहमतिके क्षेत्र' की बात कही है। उससे मेरा अभिप्राय दोनों सम्प्रदायोंके तमाम व्यक्तियों और समुदायोंके बीच सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक मामलों---जैसे धार्मिक बातोंमें मतभेदके मुद्दोंको उभारने---की अपेक्षा मुझे दोनों पक्षोंमें समान रूपसे विद्यमान अच्छी बातें खोजनेमें लग जाना चाहिए। अपने धार्मिक विचारों-पर कायम रहते हुए मैं जहाँ-जहाँ हो सकता है, सामाजिक बातोंमें दोनोंके बीचकी खाईको पाटनेका प्रयत्न करना पसन्द करूँगा। राजनैतिक क्षेत्रमें कार्यकी एकताके लिए अपने रास्ते से कुछ हट जाना भी मुझे पसन्द होगा।

दोनोंके झगड़ोंका फैसला करनेके लिए मैंने पंचके रूपमें हकीम साहबका नाम बेशक लिया और वह इसलिए कि उनके प्रति सब लोग आदरभाव रखते हैं। पर मैं तो ऐसे मुसलमानोंके हाथोंमें भी कलम देते हुए न हिचकूंगा, जिनकी धर्मान्धता और हिन्दुओंके प्रति बुरे खयालात पहलेसे सर्वविदित हों; क्योंकि एक हिन्दू होनेके नाते मुझे जानना चाहिए कि अगर वह हर प्रान्तमें मुसलमानोंको ज्यादा जगहें दे देगा तो भी मेरी उससे कुछ हानि न होगी। निर्वाचन-संस्थाओंमें जगहोंके दे देने या ले लेनेसे सिद्धान्तकी हानि नहीं होती। इसके अलावा तजरुबेने मुझे यह सिखाया है कि जब सारी जिम्मेदारी एक ही व्यक्तिके सिरपर रख दी जाती है तब वह अपनी आन-बानका खयाल रखकर काम करता है और अपने स्वाभिमानका या ईश्वरका यह डर उसे गम्भीरता प्रदान कर देता है।

अन्तमें, किसी घोषणापत्र या अन्य किसी ऐसी चीजसे तबतक काम बननेवाला नहीं है, जबतक हममें से कुछ लोग---फिर वे कितने ही कम हों---उसके अनुसार चलने न लग जायें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १९-६-१९२४