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१४८. परदा और प्रतिज्ञा

मैंने उपर्युक्त शीर्षक इस खयालसे नहीं रखा कि दोनों बातोंमें किसी प्रकारका कुछ सम्बन्ध है। फिर भी मैं काठियावाड़ राजपूत-परिषद्के सिलसिलेमें इन्हीं दोनोंके विषयमें कुछ लिखना चाहता हूँ और इसीलिए मैंने इन दोनों शब्दोंको साथ-साथ ले लिया है। परिषद्के एक दर्शक लिखते हैं कि परिषद् में बेहद जोश था। लगभग पन्द्रह हजार राजपूत इकट्ठा हुए होंगे। स्त्रियोंकी संख्या भी अनुमानसे बहुत ज्यादा थी। वहाँ कमसे-कम एक हजार स्त्रियाँ आई होंगी। स्त्रियोंके लिए यह संख्या सचमुच बहुत भारी कही जा सकती है। परन्तु परदेका इन्तजाम इतना सख्त किया गया था कि अनजान लोगोंको तो मालूम भी नहीं हो सकता था कि परिषद्के पण्डालमें स्त्रियाँ भी बैठी हुई हैं। स्त्रियाँ ठहरनेके मुकामोंसे मण्डपतक इस खूबीके साथ लाई जाती थीं कि किसीको मालूम तक नहीं हो पाता था कि स्त्रियाँ जा रही हैं।

परिषद् कार्यकर्त्ता ऐसे बढ़िया इन्तजामके लिए धन्यवादके पात्र अवश्य हैं; परन्तु परदेके इस अस्तित्वपर तो खेद ही प्रकट करना पड़ सकता है। कह सकते हैं कि अब परदेकी आवश्यकताका जमाना नहीं रहा। रामराज्यमें परदा था ऐसा प्रतीत नहीं होता है? हाँ, अभी रामराज्य आया नहीं है यह सच है; परन्तु अगर हम उसे लाना चाहते हों तो हमें आजसे ही वैसा आचरण प्रारम्भ कर देना चाहिए। हमें यह दिखा देना है कि हम परदेके न रहनेपर भी मर्यादाकी रक्षा कर सकते हैं। जिन लोगोंमें परदेका रिवाज नहीं हैं, कोई यह नहीं कह सकता कि उनमें मर्यादाका खयाल कम है। जब हम औरतोंको अपनी मिल्कियत समझते थे और उनका हरण किया जा सकता था, तब परदेकी जरूरत भले ही रही हो। यदि पुरुषोंका हरण होने लगे तो उन्हें भी परदेमें रहना पड़े। जहाँ ऐसी हालत है कि मनुष्य देखते ही बेगारमें पकड़ लिया जाता है वहाँ आज भी पुरुष परदेमें अर्थात् छिपकर रहते हैं। परन्तु पुरुषकी कुदृष्टिसे स्त्रियोंको बचाने का इलाज परदा नहीं, बल्कि पुरुषकी पवित्रता है।

पुरुषको पवित्र बनानेमें स्त्री बहुत सहायक हो सकती है। परदेमें रहनेवाली दबी हुई स्त्री पुरुषको भला कैसे पवित्र बना सकती है? यदि उसे शुरूसे ही पुरुषसे डरकर चलनेकी आदत डाली जाये तो वह पुरुषको कैसे सुधार सकती है? फिर स्त्रियोंको परदेमें रखना मानो उनमें एक बुराई पैदा करना है। मेरा मत है कि परदा सदाचारका पोषक नहीं, बल्कि घातक है। सदाचारके पोषणके लिए सदाचारकी शिक्षा, सदाचारके वातावरण और बड़े-बूढ़ोंके नीतियुक्त आचरणकी आवश्यकता है। मैंने परदेके सम्बन्धमें जो इतना लिखा है सो परिषद्का दोष दिखानेके लिए नहीं। पहले ही चरणमें परदा उठा देना कठिन काम था; परन्तु भविष्यके लिए कुछ राजपूतोंको इसके लिए तत्पर हो ही जाना चाहिए।