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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सफलताका क्या अर्थ निकलेगा। मुझे विश्वास है कि ज्यों ही कांग्रेसके कार्यकर्ता इस साधारणसे आविष्कारकी सम्भावनाओंको महसूस करने लगेंगे त्यों ही चरखा बहुत ही थोड़े समयमें भारतीय घरोंमें स्थान प्राप्त कर लेगा और वह गाँवके सादे-से चूल्हेके बाद हमारे समाजकी दूसरी महत्त्वपूर्ण वस्तु बन जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २५-६-१९२४

१५५. खुला पत्र: अ० भा० कां० कमेटीके सदस्योंके नाम

[ २६. जून, १९२४ से पूर्व ]

प्रिय मित्रो,

कांग्रेसको राष्ट्रकी सबसे बड़ी प्रातिनिधिक संस्था मानना ठीक ही है। यह बात अलग है कि वह देशकी उन्नति कर सकती है या नहीं। मेरी रायमें कांग्रेसका विधान प्रायः सर्वांगपूर्ण है और उसमें राष्ट्रके पूरे-पूरे प्रतिनिधित्वकी व्यवस्था है। पर चूँकि खुद हममें ही खामियाँ हैं, हमने उसके अमलमें बड़ी लापरवाही दिखाई है। देशके कितने ही हिस्सोंमें हमारे मतदाताओंकी संख्या लगभग शून्यपर पहुँच गई है। पर फिर भी जो संस्था ४० सालसे चल रही है और जिसने अबतक कितने ही तूफानोंको झेल लिया है, वह अवश्य ही देशमें सबसे अधिक शक्तिशालिनी बनी रहेगी। हम अपनेको उसके चुने हुए प्रतिनिधि मानते हैं।

कांग्रेसने १९२० में एक प्रस्ताव[१] पास किया। यह एक वर्षमें स्वराज्य प्राप्त करनेकी गरजसे रचा गया था। उक्त सालके खत्म होनेतक हम स्वराज्यसे थोड़ी ही दूर रह गये थे। पर चूँकि हम उस समय उसे न प्राप्त कर सके, इसलिए अब हमें यह नहीं मान बैठना चाहिए कि वह अनिश्चित कालके लिए मुल्तवी हो गया है। बल्कि इसके विपरीत हमें पिछले जैसा आशावादी बना रहना चाहिए। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हमारे आसपासके निरुत्साहपूर्ण वायुमण्डलसे हमें जितनी अवधिमें स्वराज्य प्राप्त करनेकी उम्मीद हो सकती है, उससे भी पहले स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए कृतसंकल्प हो जाना चाहिए।

इसी भावनासे प्रेरित होकर मैंने आपके विचारार्थ इन प्रस्तावोंकी रूपरेखा तैयार की है। कोई एक सप्ताहसे वे देशके सामने पेश हैं। उनपर जो टीका-टिप्पणी हुई है उसमें से थोड़ी-बहुत मैं पढ़ चुका हूँ। मैं मानता हूँ कि मुझे अपने निश्चयोंका दुराग्रह नहीं है। पर इन टीका-टिप्पणियोंसे मेरा मत परिवर्तित हो नहीं पाया है। मेरे कोई खेत-खलिहान नहीं है; अगर चिन्ता कुछ है तो उस उपायको खोज निकालनेकी है

 
  1. देखिए खण्ड १९, परिशिष्ट १।