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खुला पत्र: अ० भा० कां० कमेटीके सदस्योंके नाम

जिसके द्वारा हमारे स्वराज्य-प्राप्तिके रास्तेके तमाम विघ्नोंकी जड़पर कुठाराघात किया जा सके।

खादीपर मेरी श्रद्धा है। चरखेमें मेरा विश्वास है। इसके दो स्वरूप हैं---एक रुद्र दूसरा मांगलिक।

हमारे स्वतन्त्र राष्ट्रीय अस्तित्वके लिए जिस एकमात्र बहिष्कारकी आवश्यकता है वह है विदेशी कपड़ेका बहिष्कार। यह बहिष्कार खादीके रुद्र रूपके द्वारा सम्भव होगा। खादीका यह रुद्र रूप ही हमारी आत्माको हीन बनानेवाले ब्रिटिश स्वार्थका नाश कर सकता है। जब वह स्वार्थ नष्ट हो जायेगा केवल तभी हम इस लायक होंगे कि ब्रिटिश राजनीतिज्ञोंके साथ बराबरीसे बात कर सकें। आज तो वे अपने स्वार्थमें ऐसे अन्धे बने हुए हैं जैसा कि इस स्थितिमें कोई भी और हो सकता है।

मांगलिक रूपमें वह ग्रामवासियोंको एक नया जीवन और नई आशा प्रदान करता है। वह लाखों भूखे-पेट लोगोंको अन्न दे सकता है। खादीके द्वारा हम गाँववालोंके सम्पर्कमें आयेंगे और हमें उनके सुख-दुःख अपने सुख-दुःख लगेंगे। लाखों लोगोंके लिए यदि कोई सर्वोत्तम शिक्षा हो सकती है तो वह यहीं है। यह जीवनदायिनी है। अतएव मुझे इस बातमें जरा भी हिचकिचाहट न होगी कि स्वराज्य प्राप्त होनेतक मैं कांग्रेसको खादीका उत्पादन और खादीका ही प्रचार करनेवाली संस्थाके रूपमें बदल दूँ---ठीक उसी तरह जिस तरह मैं उसे, अगर शस्त्र-संचालनका कायल होता और उसके द्वारा इंग्लैंडसे युद्ध करनेके लिए तैयार होता तो केवल शस्त्रास्त्रोंकी शिक्षा देनेवाली संस्था बना डालता। कांग्रेस उसी अवस्थामें सच्ची राष्ट्रीय संस्था हो सकती है जब वह अपनी सारी शक्ति सिर्फ उसी काममें लगाये जिससे देशको जल्दीसे-जल्दी स्वराज्यके समीप लाया जा सकता है।

चूँकि मैं इस बातका कायल हूँ कि खादीमें हमें स्वराज्य दिला सकनेकी शक्ति है। इसीलिए मैंने खादीको अपने कार्यक्रममें सबसे प्रधान स्थान दिया है। अगर मेरी तरह आपका विश्वास उसपर न हो तो आप निस्संकोच उसे एकबारगी रद कर दीजिए। पर अगर आप भी उसके कायल हों तो आप भी मेरे द्वारा प्रस्तुत बातोंको ऐसा मानें कि कमसे-कम इतना तो किया ही जाना चाहिए। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि अगर मुझे ऐसी आशंका न होती कि आपपर अनुचित बोझ पड़ जायेगा तो मैं आपसे रोजाना ४ घण्टे चरखा चलानेकी प्रार्थना करता---बजाय आध घंटेके।

इस सिलसिलेमें मुझे स्वराज्यवादियोंके बारेमें अपना अविश्वास कबूल करना चाहिए। मुझे मालूम हुआ है कि औरोंकी बनिस्बत उनमें खादीका इस्तेमाल घटता जा रहा है। यह देखकर मेरे चित्तको बड़ी व्यथा हुई कि कितने ही स्वराज्यवादी लोगोंने खादीको आखिरी नमस्कार कर लिया है और अब वे विदेशी कपड़ा पहनने लगे हैं। और कुछ लोगोंने धमकी दी है कि अगर आप हमारे पीछे इसी तरह पड़े रहेंगे तो हम खादी और चरखेको बिलकुल छोड़ देंगे। मैंने सुना है कि बहुतेरे अपरिवर्तन- वादियोंकी भी लगभग ऐसी ही हालत है। अब भी वे प्रसंगोपात्त समारोहोंपर ही खादी पहनते हैं। वे घरपर तो विदेशी या मिलका कपड़ा पहननेमें संकोच नहीं मानते।