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१५६. जेलके अनुभव--९

कुछ कैदी वार्डर

कैदियोंको जेलके अधिकारी या वार्डर नियुक्त करनेकी पद्धतिपर मैं पहले ही विचार कर चुका हूँ। मैं इस पद्धतिको बिलकुल खराब और पतनकारी मानता हूँ। जेलके अधिकारी इस बातको जानते हैं। वे कहते हैं कि इसे मितव्ययिताके ध्यानसे अपनाया जाता है। उनका खयाल है कि जेलोंका प्रशासन, बिना कैदी अधिकारियोंकी सहायता लिये आज जितने वैतनिक कर्मचारी होते हैं उनके द्वारा दक्षतापूर्ण नहीं चलाया जा सकता। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जबतक पिछले अध्यायमें मेरे द्वारा सुझाया गया सुधार प्रारम्भ नहीं किया जाता, तबतक जेलका खर्च बहुत ज्यादा बढ़ाये बिना उक्त पद्धतिको समाप्त कर देना सम्भव नहीं है।

जो हो, इस अध्यायमें जेलोंके सुधारपर और अधिक विचार करना मेरा उद्देश्य नहीं है। यहाँ तो मैं केवल उन कैदी अधिकारियोंसे सम्बन्धित अपने सुखद अनुभवोंका वर्णन करना चाहता हूँ, जो मेरी देखभाल करने और मुझपर नजर रखनेके लिए नियुक्त किये गये थे।

जब श्री बैंकर और मैं यरवदा सेन्ट्रल जेलमें स्थानान्तरित किये गये, तब वहाँ एक पहरेदार और एक 'बरदासी' था। बरदासी क्या होता है, यह उसके नामसे ही स्पष्ट है---मात्र एक टहलुआ। वह कैदी पहरेदार, जिससे पहले-पहल हमारी पहचान हुई, पंजाबकी तरफका एक हिन्दू था। उसका नाम था हरकरन। उसे खून करनेके अपराधमें सजा मिली थी। उसका कहना था कि खून पहलेसे सोच-विचार कर नहीं, बल्कि एकाएक गुस्सेमें आकर किया था। धन्धेसे वह अदना व्यापारी था। उसे चौदह सालकी सजा हुई थी, जिनमें से लगभग नौ साल वह काट चुका था। वह काफी बूढ़ा था। जेलके जीवनका उसपर बुरा असर पड़ा था। वह हमेशा कुछ सोचमें डूबा रहता था और रिहाईके लिए बेचैन रहता था। इसलिए वह उदास रहा करता था और चिड़चिड़ा हो गया था। उसे अपने इस ऊँचे ओहदेका खयाल बना ही रहता था। जो उसकी आज्ञा मानते और उसकी सेवा-करते उनपर वह मेहरबान रहता था, किन्तु जो उसके मार्गमें आड़े आते, उन्हें वह हर तरहसे परेशान करता रहता था। उसे देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि उसने खून किया होगा। उर्दू वह धड़ल्लेसे पढ़ लेता था और वह धार्मिक वृत्तिका था। वह उर्दूमें भजन बाँचा करता था। यरवदाके पुस्तकालयमें हिन्दी, उर्दू, मराठी, गुजराती, सिन्धी, कन्नड़, तमिल आदि कई भारतीय भाषाओंमें कैदियोंके लिए कुछ पुस्तकें हैं। हरकरनमें जेलके नियमोंकी अवज्ञा करके छोटी-मोटी चीजें छुपाकर अपने पास रखे रहनेका दोष था। बहुमत उसके साथ था। छोटी-मोटी चीजें भी न चुराना मिथ्या दम्भ और मूर्खता माना जाता। जो कैदी इस अलिखित कानूनका पालन न करता, उसके साथी उसका जीवन दूभर