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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहता या करता था, उसके लिए उससे रुष्ट होने अथवा प्रतिशोध लेनेका तनिक भी विचार मेरे मनमें नहीं आया। मैं अपने काम और अध्ययनमें इतना व्यस्त था कि हरकरनके सीधे-सादे, बचकाने आदेशोंके बारेमें सोचता भी नहीं था। मैं क्षण-भर ऐसे आदेशोंका मजा-भर ले लेता। हरकरनको आखिर अपनी भूल मालूम हुई। उसने जब देखा कि मैं न तो उसकी बेमतलबकी अफसरीसे अप्रसन्न होता हूँ, न उसपर कोई ध्यान ही देता हूँ तो वह हतप्रभ हो गया। ऐसा हो सकता है, यह उसने सोचा भी नहीं था। अतः उसने वही मार्ग अपनाया, जो अब उसके लिए खुला रह गया था अर्थात् यह मान लेना कि औरोंमें और मुझमें कुछ अन्तर जरूर है। मेरी प्रतिक्रिया उसके ढंगकी नहीं हुई, वह मेरे ढंगकी प्रतिक्रियापर आ गया। मेरे इस अहिंसात्मक असहयोगका नतीजा निकला मुझसे उसका सहयोग। सब प्रकारका अहिंसात्मक असहयोग, चाहे वह व्यक्तियोंके बीच हो या समाजोंके, चाहे शासकों और शासितोंके बीच, अन्तमें अवश्य ही हार्दिक सहयोगको जन्म देता है। जो हो, मैं और हरकरन पक्के दोस्त हो गये। जब श्री बैंकर वापिस मेरे पास भेज दिये गये, तब रही-सही कसर भी पूरी हो गई। कारागारमें उनके अनेक कामोंमें से एक काम था मेरे यत्किचित् गुणोंका ढोल पीटना। उनका खयाल था कि हरकरन और अन्य लोग मेरी महत्ताको समझते नहीं हैं, दो या तीन दिनमें ही मेरी इतनी सार-संभाल होने लगी मानो मैं उनके कपड़ोंमें लपेट रखने लायक कोई नन्हा-सा बच्चा होऊँ। मैं उसकी निगाहमें इतना महान् हो गया कि मुझे अपनी कोठरी स्वयं बुहारने या कम्बलोंको धूप दिखाने नहीं दी जा सकती थी। हरकरन पूरा खयाल तो रखने ही लगा था, किन्तु अब वह इतना अधिक खयाल रखने लगा कि मुझे परेशानी मालूम होने लगी। अब मेरा स्वयं कुछ करना, यहाँतक कि एक रूमाल धोना भी सम्भव नहीं रहा। हरकरन मेरे रूमाल धोनेकी आवाज सुनता तो गुसलखानेमें घुस आता और रूमाल मुझसे छीन लेता। अब चाहे अधिकारियोंको शक हो गया हो कि हरकरन हमारे लिए कुछ अवैध काम करता है या फिर चाहे वह बिलकुल आकस्मिक घटना हो, किन्तु हरकरनको हमारे पाससे दूर कर दिया गया, जिसका हमें अफसोस हुआ। कदाचित् यह विछोह हमारी अपेक्षा उसे अधिक खला। हमारे साथ उसकी बड़े ही ठाठकी गुजरती थी। हमारी भोजन-सामग्री तथा मित्रोंके द्वारा बाहरसे भेजे गये फल आदिमें से उसे खूब खानेको मिलता और सो भी खुल्लमखुल्ला। और चूँकि जेलमें हमारी शोहरतका ढिंढोरा पिट गया था, हमारे सम्पर्कसे वह कैदियोंकी निगाहमें और ऊँचा चढ़ गया।

जब मुझे अपने कोठरीके बरामदेमें सोनेकी इजाजत मिल गई तो अधिकारियोंने सोचा कि अब मुझे एक ही पहरेदारके भरोसे छोड़ना जोखिमकी बात होगी। कदाचित् यह नियम भी रहा हो कि जिस कैदीकी कोठरी खुली रहती हो, उसकी देख-रेखके लिए दो पहरेदार रहें। यह भी हो सकता है कि एक और पहरेदार मेरी सुरक्षाके लिए बढ़ा दिया गया हो। कारण कुछ भी हो, रातके लिए एक और पहरेदार तैनात कर दिया गया। इसका नाम था शाबास खाँ। मैंने कारण कभी पूछा नहीं, किन्तु मुझे