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जेलके अनुभव--९

लगा कि हरकरन हिन्दू है तो सन्तुलनके लिए दूसरा मुसलमान चुना गया। शाबाश खाँ एक ताकतवर बलूची था। वह हरकरनका समकालीन था। दोनों एक दूसरेको अच्छी तरह जानते थे। शाबास खाँको भी खूनके अपराधमें सजा हुई थी। जिस कबीलेका वह था, उसमें झगड़ा हो जानेसे खून हुआ था। शाबास खाँ जितना ऊँचा था उतना ही चौड़ा। उसके डीलडौलको देखकर मुझे हमेशा शौकत अलीकी याद आती। "मैं आपपर शाबाश खाँने मुझे पहले ही दिन आश्वस्त कर दिया। उसने कहा, निगरानी बिलकुल नहीं रखूँगा। मुझे अपना दोस्त समझिए और जो मर्जीमें आये कीजिए। मैं आपकी किसी बातमें दखल नहीं दूँगा, आप कोई काम कराना चाहें और मैं उसे कर सकूँगा तो मुझे बहुत खुशी होगी।" शाबाश खाँने जो कहा, वहीं किया। वह हमेशा नम्रताका व्यवहार करता था। वह हमेशा कारागारके सुस्वादु मिष्टान्न लाता और मुझसे स्वीकार करने को कहता और मेरे इनकार करनेपर उसे हार्दिक दुःख होता। वह कहा करता था, 'आप नहीं जानते---अगर हम ये कुछ चीजें न हथियायें तो रोज-रोज वही चीजें खाते-खाते जिन्दगी दूभर हो जाये। आप लोगोंकी बात दूसरी है। आप ईमानकी खातिर आये हैं। यह बात आपको सहारा दिया करती है, जब कि हम जानते हैं कि हम गुनाह करके आये हैं। हम लोग तो बस जितनी जल्दी हो, बाहर जाना चाहते हैं। "शाबाश खाँ जेलरका कृपापात्र था। उसकी तारीफ करते-करते जोशमें आकर एक दिन उन्होंने कहा था, "उसकी तरफ देखिए। मेरी नजरमें वह बड़ा ही शरीफ आदमी है। गुस्सेमें आकर वह खूनकर बैठा, जिसके लिए सच्चे दिलसे पछताता है। यकीन मानिए कि [ जेलके ] बाहर भी, शाबाश खाँसे ज्यादा अच्छे आदमी बहुत नहीं मिलेंगे। यह समझना गलत है कि सभी कैदी पक्के अपराधी होते हैं। शाबाश खाँको मैंने बहुत ही विश्वसनीय और शिष्ट पाया है। यदि मेरे हाथमें सत्ता होती तो मैं उसे आज हीं मुक्त कर देता।" जेलरका खयाल गलत नहीं था। शाबाश खाँ सचमुच अच्छा आदमी था। उस जेलमें केवल वही एक भला कैदी हो सो बात नहीं थी। यहाँ हम यह भी समझ लें कि नेक उसे जेलने नहीं बनाया था, वह पहलेसे ही नेक था।

जेलोंमें यह रिवाज है कि किसी भी कैदी-अधिकारीको बहुत समयतक एक ही कामपर न रखा जाये। हमेशा तबादले होते रहते हैं। यह एहतियात जरूरी है। वर्तमान पद्धतिके अधीन कैदियोंको घनिष्ठ सम्बन्ध बनानेका अवसर नहीं दिया जा सकता। अतः हमें कैदी-अधिकारियोंका अत्यन्त विविध अनुभव हुआ। लगभग दो महीने बाद शाबाश खाँकी जगह आदन आ गया। इस वार्डरका परिचय मैं पाठकको आगामी अध्यायमें दूँगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २६-६-१९२४